खोये हुए राष्ट्रवैभव की तुमने याद दिलाई।
राम कथा गायन कर जग को दिशा दिखाई।।
क्रौंच मिथुन की पीड़ा तुमसे नहीं सहन थी।
कवि तेरी पीड़ा ने ही तो श्लोक बनाई।।1।।
त्रेता युग में बाल्मीकि ऋषि जन्म लिये थे।
किंतु कुसंगति मे पड़ कर वे मलिन बन गए।
परम तपस्वी गंगा तट पर तप करने से ।।
फिर सत्संग किया तो वे सद्विप्र बन गए।।2।।
एक शाम ऋषि बाल्मीकि थे गंगा तट पर।
संध्या वंदन करते देखा क्रौंच मिथुन को।।
एक व्याध के वाण लगे नर गिरा धरणि पर।
क्रौंची करती रुदन गिर पड़ी उस पक्षी पर।।3।।
बाल्मिकि का हृदय द्रवित था, शोकाकुल हो।
कविता फूट पड़ी उर से मधुद्रवित श्लोकहो।।
क्यों मारा हे व्याध! काम मोहित जोड़े को?
क्या पीड़ा होती न हमारे ज्यों, इस खग को??4।।
नहीं समझता जो पर पीड़ा ,कैसा प्राणी?
वह भी क्या इंसान? न सूझे करुण कहानी।
अपने जैसा हर प्राणी को समझो प्यारे।
प्रेम नहीं पनपा तो समझो सब कुछ हारे।।5।।
जग मे आकर राम सरीखा रहना सीखो।
पर पीड़ा अपनी पीड़ा है सहना सीखौ।।
जो पर दुख को दूर कर सके वह मानव है।
रहे क्रूर जग को पीड़ा दे वह दानव है।।6।।
राम बनो जो कभी किसी मे भेद न जाना।
शबरी हो या हो निषाद कुछ भेद न माना।।
प्राणो से प्रिय लगे जिसे सारे नर जग के।
पशु पक्षी से भी जिसने अपनापन माना।।7।।
गिद्ध जटायु को भी जिसने गले लगाया।
दैत्य विभीषण रहा, उसे भी मित्र बनाया।।
था सुग्रीव दुखी,उसका दुख दूर कर दिया।
वनवासी बानर भालू को भी सहलाया।।8।।
रामायण रचना कर जग को दिशा दिखा दी।
लव कुश को संस्कार दिये,रण वीर बना दी।।
बाल्मीकि ऋषि ने सीता को आश्रय देकर।
नारी का सम्मान करो जग को शिक्षा दी।।9।।
हम करते हैं नमन राष्ट्र को, जन्मभूमि है।
भारत तो ऋषियों मुनियों की तपो भूमि है।।
जगती को जिसने सदैव सन्मार्ग दिखाया।
प्रेम भाव से जीने का संकल्प सिखाया।।10।।