- इनसे ही है सृजन पालन और संहार
- गायत्री मंत्र से इनकी होती है आराधना
- जड़ चेतन जगत को उपजाया सूर्य ने
- ब्रह्मा के रुप मे सृजन,विस्णु रूप मे पालन व शिव रूप मे करते हैं संहार
- इनके पुत्र है विवश्वान वंशज है इक्ष्वाकु
- कश्यप- अदिति के पुत्र है, 33 कोटि देवता
- कश्यप- दिति की संताने है राक्षस
- मनु -शतरूपा की संताने हैं मनुष्य
छठ पूजा मे छठ के दिन सायंकाल अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दीपदान और षष्ठी माता के पूजन के बाद सोमवार की सप्तमी को प्रात: उदय होते सूर्य को जलमे खड़े होकर अर्घ्य देना प्रत्यक्ष देवता की उपासना है। इस देवता का दर्शन सभी करते हैं। समूची प्रकृति इनके योगदान को भुला नहीं सकती। चराचर जगत को अपने सप्त अश्वों वाले रथ से प्रकाशीय ऊर्जा प्रदान कर समस्त ग्रहों को प्रकाशित करते हैं । सभी प्राणियों को कर्म की प्रेरणा देने वाले सूर्य की हमारे जीवन मे अहम भूमिका निभाते है। बीज को पोधे और वृक्षों मे परिणत कर फसलों को उगाने वाले भगवान सूर्यदेव हमारा पालन पोषण करने वाले नारायण है।
इसीलिए भगवान सूर्य नारायण कहलाते हैं। इनकी प्रत्येक श्वेत किरणों मे सात रंग हैं। जो धरती को रंगबिरंगा बनाते हैं। लोगों की नेत्र ज्योति के रूप मे सब कुछ दिखाने वाले हैं। इनकी प्रेरणा सै सभी पंचमहाभूत अपने गुणो के अनुसार वर्तने लगते हैं। हमारा शरीर रात होते ही निश्चेष्ट होकर निद्रा मे पड़ जाती है ,पर सूर्योदय होने के साथ जागृत होकर कर्म करने लिए तत्पर हो जाता है। सूर्योदय के साथ गंधर्व गायन करने लगते है,अप्सरायें नृत्य करने लगती हैं। राक्षसी स्वभाव के लोग भी धन बल बाहुबल का प्रदर्शन करने लगते हैं। संत स्वभाव के लोग योग साधना और आत्म चिंतन मे लग जाते हैं। राजा आपने राज कार्य मे और जनता अपने कृषि, गोरक्ष ,वाणिज्य रोजगार के साधनों में लगकर कर्तव्य के प्रति सजग हो जाते है।
संगीत के सात स्वर फूट पड़ते हैं। ऋषियों द्वारा वेद मंत्रों की ऋचाये आकाश में गूंजने लगती है। सूर्य के रथ के आगे बालखिल्य ऋषिगण नृत्य कर उत्सव मनाते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार हर महीने के सूर्य के अलग अलग नाम हैं, सबके ऋषियों के अलग नाम है, ग़धर्व, किन्नर, अप्सरा,राक्षस अश्व व नाग आदि अलग नाम वाले हैं। ऐसे सात गण हमेशा उनके साथ साथ चलते हैं। एक पहिये वाले रथ की बारह तीलियां ही बारह मास हैं और सात घोड़े अलग अलग रंग वाली रश्मियो के वर्ण वाले ही है। इनके सारथी अरुण पंगु हैं उनका चेहरा हमेशा सूर्य की तरफ रहता है। सात नाग है ,.जिनसे घोड़े बंधे हैं वे सप्ताह के सात दिन हैं। यह सूर्य ही जन्म और मत्यु कारण है। इसलिए सूर्य की उपासना नित्य करनी चाहिए। यही हमे सुख समृद्धि ऋद्धि सिद्धि प्रशासनिक गुणके प्रदाता है। यही सबमे शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु हैं। श्रीहनुमान ने इन्ही से ज्ञान प्राप्त किया।