के. विक्रम राव
भारत में कल तक अर्जेंटीना उसके ख्यात फुटबॉलर डिएगो मारडोना के नाम से जाना जाता था। आज से इस टीवी समीक्षक जेवियर मिलेई के नाम से जाना जाएगा। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के कई अद्भुत और भू-डुलानेवाले चुनावी वादों के फलस्वरुप। मतदाताओं को भी संभावित क्रांति का आभास तो हो गया। मसलन मिलेई ने कहा था कि अर्जेंटीना की मुद्रा पेसो की जगह अमेरिकी डॉलर का चलन होगा, ताकि दाम कम हो सकें। जननेताओं के भ्रष्टाचार से पेसो की विनिमय दर गिरी है। नए राष्ट्रपति सेंट्रल बैंक को खत्म कर देंगे। अभी तक सत्तारूढ़ वित्तमंत्री नोट छाप कर अर्थनीति पर काबू पाते रहे थे। विदेशी कर्ज से टूटी कमर को सीधा करने और चालीस प्रतिशत निर्धनों को उबारने हेतु यह जरूरी कदम लेंगे। छप्पन प्रतिशत वोट पाकर मिलेई ने डेढ़ करोड़ जनता को आश्वस्त किया कि डेढ़ सौ फीसदी मुद्रास्फीति को घटाना उनका पहला राजकार्य होगा। अर्जेंटीना दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन का भागीदार था। अतः मिलेई की प्रथम घोषणा थी कि कम्युनिस्ट चीन से उनके गणराज्य का कोई व्यापारिक संबंध नहीं रहेगा। बड़ा मनभावन है। हालांकि चीन की विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ नींग ने बीजिंग में कहा :“अर्जेंटीना से मित्रता बनी रहेगी।
सर्वाधिक दिलचस्प बयान नए राष्ट्रपति का धर्म पर है। अर्जेंटीना एक ईसाई राष्ट्र है। रोम के पोप का भक्त। वर्तमान पोप फ्रांसिस भी ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) में जन्मे थे। वे चौकीदार रहे हैं। तकनीशियन भी रहे। मिलेई की घोषणा है : यह “पोप मूढ़ हैं। वह धरती पर दुर्भावना का घोत्तक है।” हालांकि यह पोप बड़े धर्मपारायण हैं। श्लाध्य रहे हैं। सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट्स) के सदस्य बनने वाले फ्रांसिस पहले पोप हैं। अमेरिका के पहले, दक्षिणी गोलार्ध से पहले बनने वाले पोप वे ही हैं। मिलेई की विजय की घोषणा होते ही उनके समर्थक राजधानी की सड़कों पर रातभर विजयोत्सव मनाते रहे। मोटर गाड़ियों पर लहराते झंडे में राष्ट्रीय पताका के साथ गैड्सडेन भी लहरा रहा था। उस पर लिपटा हुआ सांप चिन्हित था। चेतावनी लिखी थी : “हम पर पैर मत रखना।” डस लिया जाएगा। इस खुशी के संदर्भ में फुटबॉलर माराडोना से मिलेई की समता का जिक्र हो। उनके पराजित प्रतिद्वंदी पर मिलेई के साथ मतदाताओं ने भी राष्ट्रीय हीरो माराडोना द्वारा इंग्लैंड को विश्व कप में दो गोल-दागनेवाले माराडोना को याद किया।
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ठीक ऐसी ही जीत रही मतदान में मिलेई की भी। एक शानदार गोल 6 मीटर की दूरी से इंग्लैंड के छः खिलाड़ियों के बीच से निकाल कर मारा था माराडोना ने, जो आम तौर पर “दी गोल ऑफ़ दी सेंचुरी” के नाम से जाना जाता है। मिलेई को लोग डोनाल्ड ट्रंप का प्रतिरूप मानते हैं। भावुक, तुनुक मिजाजी, हंसोड़। मगर कई निजी विशिष्टताएं उनकी हैं, स्पष्ट सोच भी। मिलई हमेशा से ‘वित्तीय अनुशासन’ की बात करते आए हैं। वे कुछ साल पहले तक अर्जेंटीना के टीवी चैनलों पर वित्तीय निष्णात के तौर पर अपनी राय रखते थे। वह आर्थिक सुधार के लिए लगातार राजनीतिक पार्टियों को निशाना बनाते रहे हैं। आर्थिक नीतियों से इतर मिलई सामाजिक मुद्दों पर घोर ‘दक्षिणपंथी विचार’ रखते हैं। वे हमेशा से फेमिनिज्म और गर्भपात के विरोध में रहे हैं। कुछ साल पहले अर्जेंटीना में गर्भपात को कानून के दायरे में लाया गया था। महिलाओं को गर्भपात की आजादी दी गई। लेकिन मिलई ने अपने चुनावी सभा में कहा था कि वह राष्ट्रपति बनते ही गर्भपात के अधिकार को निरस्त करने के लिए जनमत संग्रह कराएंगे।
वामपंथी सर्जियो मासा को हराने वाले मिलेई की नीतिगत घोषणाओं को सुनकर उनके आलोचक उन्हें “सनकी” मानते हैं। भारत के राजनेताओं को इस विलक्षण राजनेता का अध्ययन करना चाहिए। मसलन मिलेई ने चुनाव प्रचार में रेवड़ी बांटने के साफ मना कर दिया था। अभियान के दौरान उन्होंने शासनतंत्र और राजकीयखर्चे पर खर्च की कटौती का वादा किया। कहा था संस्कृति, महिला, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य कल्याण के विभाग बंद कर देंगे। मिलेई की कई चुनावी प्रचार में उनके समर्थकों को ‘मेक अर्जेंटीना ग्रेट अगेन’ की टोपी पहने देखा गया है, जैसे अमेरिका में ट्रंप ने “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” जैसे नारों का इस्तेमाल किया था। ब्यूरोक्रेसी और सरकारी खर्च में जबरदस्त कटौती का वादा किया था। उनके मुताबिक-अर्जेंटीना में बंदूक रखने के कानूनों को सरल बनाएंगे। मानव अंगों की खरीद-फरोख्त को मंजूरी देंगे।
अभियान के दौरान मिलेई आरी लेकर चलते थे। दरअसल, वो मतदाताओं को यह संदेशा देना चाहते थे कि सरकारी खर्च ने देश को तबाह कर दिया है। इसमें सख्ती से कटौती की जाएगी। हालांकि, आलोचना के बाद उन्होंने आरी लेकर चलना बंद कर दिया। मिलेई की जीत से ज्यादातर आम नागरिक खुश हैं। न्यूज एजेंसी ‘एएफपी’ से बातचीत में एक महिला ने कहा : “हम थक चुके थे। कुछ नया चाहते हैं। उम्मीद है जेवियर हमारी जिंदगी में बेहतर बदलाव लाएंगे और देश भी परिवर्तन देखेगा।” अब बात सियासी समीकरण की। दरअसल, जेवियर को जीत भले ही मिल गई हो, लेकिन उनकी पार्टी को संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं है। ऐसे में उन्होंने दूसरी पार्टियों का समर्थन और मदद जरूरी होगा।
गत कई दशकों से भारत के अर्जेंटाइयन से प्रगाढ़ रिश्ते रहे। ठीक सौ साल पूर्व (1924 में) रविंद्रनाथ टैगोर ने ब्यूनेस आयर्स की यात्रा की थी। वह कवियित्रि विक्टोरिया ओकाम्पो के अतिथि के रूप में दो महीने तक वहां रहे। टैगोर ने अर्जेंटीना में अपने प्रवास के बारे में “पूरबी” शीर्षक के तहत कविताओं की एक श्रृंखला लिखी। विक्टोरिया ओकाम्पो को 1968 में विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। मिलेई के राष्ट्रपति काल में भारत से दौत्य संबंध बेहतर होंगे क्योंकि दोनों देश इजराइल पर अरब आक्रमण की निंदा करते हैं। दोनों चीन से सावधानी बरतते रहे हैं। दोनों अमेरिका के नजदीकी मित्र हैं। हालांकि इन दोनों गणराज्यों में भौगोलिक फासला सोलह हजार किलोमीटर का है पर संयुक्त राष्ट्र में दोनों के मत बहुधा एक साथ ही पड़ते हैं। सामीप्य है।