- एकोऽहम्_बहुस्याम्
- अपने का बिस्तार.. और समेटने का गुर।
- यही है -हरि का अनुग्रह
- तेरा तुझको अर्पण
शिशु के जन्म होने के बाद पढ़ाते लिखाते अपनी संतान को बढ़ते देख मां बाप कितने प्रसन्न होते हैं। इसी तरह आपको जन्म के बाद पालन पोषण करते आपके माता -पिता ,भाई- बहन प्रसन्न होते रहे। युवावस्था होते ही आपकी ही हमउम्र पराये घर से आई हुई,अपने मां- बाप,भाई और बहनो की दुलारी पत्नी मिल गई है। इन सबके साथ ससुराल के साथ नये रिश्तेदार भी मिले। वे सभी रिश्तेदार के रूप में आपके परिवार के साथ जुड़ गए। फिर तो सबके केंद्र- बिंदु आप होगए। आप नौकरी करो या व्यवसाय.. आपके सहकर्मी.. और समाज भी आपसे जुड़ गया। अब आपके साथ सबकी आशायें ,सबका प्यार आकर जुड़ा हुआ है। इनमे से कुछ ईर्ष्यालु होंगे, कुछ द्वेषी होंगे ,कुछ निंदा करने वाले और कुछ प्रशंसक भी होंगे। जो समय समय पर आपके मन में उठने वाले विकार दूर करेंगे। उत्तेजित भी करेंगे।
साथ ही हर परिस्थितियों से जूझना भी सिखायेंगे। आपकी हर तरह से सफाई कर आपको निर्मल बनाने का यत्न करने वाले साधु स्वभाव के लोग भी मिलेंगे।जब कि कुछ कुसंग देकर पतनोन्मुख करने वाले मिलेंगे। जिनसे बच बचाकर आपको सबके साथ बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार कर अपनी अस्मिता बचाये रखनी होगी। साथ ही हर रिश्तों को बचाये रखना होगा।
यही आपकी जीवन शैली ही आपको जीवन की हर कला सिखायेगी। यही करके सीखना कहलाता है।
इसीलिए कहते हैं जीवन जीना भी एक कला है।
गीता के उपदेश, महाभारत, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत महा पुराण ,पाश्चात्य दार्शनिको के विचार आदि आपकी सोच को व्यापक बनायेंगे। आप हर पल सीखेंगे और आगे बढ़ेंगे। विचारो को व्यवहार मे उतारने मे ही आपका बचपना खोजाएगा। क्रमश: आप गंभीर होते जाएंगे। फिर जीवन का महत्वपूर्ण काल आएगा.. अमृत काल..जीवन का उत्तरार्द्ध। अब आपको अपने आपको समेटना होगा। शरीर शिथिल होता जायेगा। संसार के लोग उदासीन होते जाएंगे।
अब यदि संसार को मन मे रखेंगे तो कष्ट होगा। सबका व्यवहार परखने लगेंगे तो तकलीफ होगी। बुद्धिमत्ता होगी तो उस अदृश्य परमात्मा से जुड़ने का यत्न करेंगे। समझदार होंगे तो संबंधों के निर्वहन की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी को सौंपते जाएंगे। संसार से ममत्वत्यागेंगे और सर्वात्मा को धन्यवाद कहेंगे.. तब स्वत:अंतरात्मा बोल उठेगी….
“हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों’।
साधन धाम बिबुध दुर्लभ तनु मोहिं कृपा करि दीन्हों।
कोटीहुं मुख कहिजात न प्रभु के एक एक उपकार।।”
अब आप का वक्त होगा.. आत्म ज्योति के परमात्म ज्योति मे समाने का। कोई भी ममत्व होगा तो आपको मुक्त नहीं होने देगा। इसलिए हर ममत्व त्याग कर कहिये.. नाथ तवास्मि ।
तब अंतर्मन ..नाचेगा ..गायेगा. हरि मे समायेगी आत्म ज्योति।
यही है तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।