जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
जिस प्रकार एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और साधक को मनोवान्छित फल प्रदान करते है। उसी प्रकार आठ प्रकार की महाद्वादशी का व्रत और पूजन भी मनवांछित फल प्रदान करता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार साधक को एकादशी व्रत के साथ आठ महाद्वादशियों के व्रत का भी पालन करना चाहिए। यह महाद्वादशी 4 तिथि योग और 4 नक्षत्र योग के अनुसार घटित होती हैं। इन महाद्वादशियों के व्रत और पूजन का माहात्म्य बहुत अधिक होता है। इन महाद्वादशियां के व्रत का पालन करने वाले साधक को सभी प्रकार के दुखों, पापों और परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। बहुत से गौड़ीय वैष्णव भक्त तो एकादशियों के व्रत के बजाए आठ महाद्वादशी व्रतों का ही पालन करते हैं। यह आठ महाद्वादशियां इस प्रकार है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ऐसी आठ विशेष स्थितियाँ होती हैं जिनके कारण द्वादशी तिथि महा-द्वादशी बन जाती है।
उन्मीलनी महाद्वादशी : यदि द्वादशी तिथि के दिन प्रातः काल सूर्योदय तक एकादशी रहती है, तो इसे उन्मिलिनी महाद्वादशी कहते है।
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त्रिस्पर्शा महाद्वादशी : यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय के बाद आरम्भ होती है और अगले दिन अर्थात त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है, तो इसे त्रि-स्पर्शा महाद्वादशी कहते हैं।
व्यंजुली महाद्वादशी : यदि द्वादशी तिथि लगातार दो दिन सूर्योदय के समय तक रहती है या अन्य शब्दों में कहे तो यदि सूर्योदय से 90 मिनट पूर्व तक एकादशी तिथि हो और सूर्योदय द्वादशी तिथि में हो और इसके साथ अगले दिन (त्रयोदशी तिथि) प्रात:काल सूर्योदय के बाद तक द्वादशी तिथि हो तो उसे व्यंजुली महाद्वादशी कहते हैं। इसमें पहली द्वादशी के दिन वंजुलि महाद्वादशी का व्रत एवं पूजन किया जाता है।
पक्षवर्धिनी महाद्वादशी : जिस द्वादशी तिथि के बाद अमावस्या या पूर्णिमा तिथि दो दिन सूर्योदय तक रहती है अर्थात उनकी वृद्धि होती है तो उस द्वादशी को पक्ष-वर्धिनी-महाद्वादशी कहा जाता है।
जया महाद्वादशी : यदि पुनर्वसु नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है तो उस द्वादशी को जया महाद्वादशी के नाम से पुकारा जाता है।
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विजया महाद्वादशी : यदि श्रवण नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है, तो उस द्वादशी को विजया महाद्वादशी कहते है। श्रवण नक्षत्र भगवान विष्णु के द्वारा शासित नक्षत्र है।
जयंती महाद्वादशी : यदि रोहिणी नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी के दिन होता है, तो उस द्वादशी को जयंती महाद्वादशी कहते हैं।
पापनाशिनी महाद्वादशी : यदि पुष्य नक्षत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है, तो उसे पापनाशिनी महाद्वादशी कहते हैं।
वंजुली द्वादशी का महत्व
वंजुली द्वादशी के महत्व का वर्णन हरि भक्ति विलास के ग्यारहवें अध्याय में मिलता है। उसके अनुसार यह दिन ईश्वर भक्तों के लिये बहुत खास है। इस साधक अपने भक्तियुक्त कार्यो से भगवान को बहुत ही आसानी से प्रसन्न कर सकता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण की साधना करने से साधक को श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और प्रसन्नता प्राप्त होती है। वंजुली द्वादशी के दिन को हरि वासर अर्थात हरि का दिन कहा गया है।
व्यंजुली महाद्वादशी व्रत करने से साधक को 1,000 राजसूय यज्ञ करने से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों में यहाँ तक कहा गया है कि सिर्फ ‘व्यंजुली महद्वादशी’ का मात्र नाम लेने से ही साधक की 1000 पाप योनियों का नाश हो जाता है। इस व्रत और पूजन करने से शास्त्रों में निषिद्ध भोजन खाने का पाप भी नष्ट हो जाता है। इस दिन उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में स्थित श्री राधा मनोहर मंदिर के अतिरिक्त सभी कृष्ण मंदिरों और इस्कॉन मंदिरों में व्यंजुली महाद्वादशी बहुत ही भव्यता से मनाई जाती है।
महाद्वादशी पूजा विधि
महाद्वादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा किये जाने का विधान है। भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। महाद्वादशी का व्रत एवं पूजन एकादशी व्रत और पूजन के जैसा ही होता है। इसमें त्रयोदशी के दिन पारणा किया जाता है। महाद्वादशी व्रत के नियम भी एकादशी व्रत के समान ही होते है।