सोनभद्र। राबर्ट्सगंज नगर स्थित जयप्रभा मंडपम में मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती समारोह का आयोजन किया गया जिसमें गीता में वर्णित स्वधर्म विषय पर विद्वतजनों ने अपना विचार व्यक्त किया। गीता प्रचारक अरूण चौबे ने गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि गीता समस्त प्राणीमात्र का धर्मशास्त्र है। गीता के अनुसार धर्म में सभी को प्रवेश का अधिकार है। यह भेदभाव से परे है। गीता में नियत कर्म अर्थात साधन पथ को साधक के स्वभाव में उपलब्ध क्षमता के अनुसार चार भागों में बांटा गया है।
यह वर्णक्रम क्रमशः उन्नति के सोपान हैं। इसीलिए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि स्वभाव में पायी जाने वाली क्षमता के अनुसार कर्म में लगना स्वधर्म है। भगवत् पथ में अपने से उन्नत अवस्था वालों की नकल उचित नहीं है। स्वधर्म का आचरण शुद्ध साधनापरक प्रक्रिया है और निश्चित परिणामकारी है। उन्होंने कहा कि गीता के अनुसार एक परमात्मा के प्रति समर्पित व्यक्ति ही धार्मिक है तथा एक परमात्मा में श्रद्धा स्थिर करना ही धर्म है। ईश्वर के पथ पर चलना मनुष्य का स्वधर्म है। जूना अखाड़े के स्वामी ध्यानानंद गिरि ने कहा कि गीता परमहंस संहिता है। यह योगशास्त्र है। इसके अनुकरण से मनुष्य शिव को प्राप्त कर सकता है। (वार्ता)