रंजन कुमार सिंह
कभी गुड़गाँव से दिल्ली का बॉर्डर पार करके महिपालपुर की ओर चलें या बदरपुर बॉर्डर से सरिता विहार की ओर जायें तो ध्यान दीजियेगा कि जितने भी ट्रक, टेम्पो, पिकअप वाहन हैं वे बिलकुल बायीं ओर की लेन में एक दूसरे के पीछे पीछे एक सीधी लाइन में तीस की स्पीड से चलते हुए दिखते हैं। कोई भी ट्रक एक दूसरे को ओवरटेक नहीं करता जिसके कारण सड़क की बाक़ी लेनों पर सामान्य ट्रैफ़िक जिसमें बाइक, रिक्शा, कारें, बसें और अन्य यात्री वाहन बिना किसी समस्या के चलते रहते हैं। अगर ऐसी व्यवस्था ना हो तो ऑफिस हावर्स में दिल्ली की सड़कों पर चलना ही असंभव हो जाये। परन्तु ऐसा कैसे हो जाता है कि जो ट्रक ड्राइवर गुजरात महाराष्ट्र से गुड़गाँव तक आड़े टेढ़े कट मारते हुए हज़ारों वाहनों को ओवरटेक करते हुए ताबड़ तोड़ ड्राइविंग करते हुए आया है वह दिल्ली में घुसते ही इतना सभ्य और अनुशासित कैसे हो जाता है?
क्या दिल्ली में घुसते ही ड्राइवर का हृदय परिवर्तन हो जाता है? क्या उसको अचानक से ट्रैफिक सेंस आ जाती है?
नहीं जी! दिल्ली में घुसते ही उसे दस हज़ार रुपये के चालान की तलवार अपने सिर पर लटकती हुई दिखाई देने लगती है। दिल्ली में कमर्शियल वाहन द्वारा दूसरे वाहन को ओवरटेक करने पर दस हज़ार रुपये का चालान का नियम है, जिसका पालन दिल्ली पुलिस द्वारा बहुत कठोरता से किया जाता है। लगभग हर विकसित देशों में आपका वाहन इंश्योरेंस रेट आपके ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ा होता है। मने जितना आपका ड्राइविंग लाइसेंस से लिंक्ड ट्रैफिक ऑफ़ेसेस ज्यादा होते हैं उतना ही आपको वाहन इंश्योरेंस का प्रीमियम ज्यादा देना पड़ता है। ऐसे में किसी दुर्घटना होने के केस में ड्राइवर का प्रयास रहता है कि वह केस से भागने की बजाय उसे स्वयं ही सरेंडर करके इंश्योरेंस कम्पनी से क्लेम दिलवाये जिस से कि उसका रिकॉर्ड अच्छा रहे और उसके ड्राइविंग लाइसेंस पर ऑफ़ेंसिव रिकॉर्ड ना बने। केवल अच्छे सड़क इंफ़्रास्ट्रक्चर से देश विकसित नहीं होता। देश के लोगों का सड़कों पर चलने का आचरण भी विकसित करना पड़ता है!
एक अनुभव बताता हूं। विदेश में एक परिवार के एक सदस्य की खड़ी कार में एक स्थानीय ड्राइवर की लापरवाही से टक्कर लगी जिसमें कार का काफ़ी नुक़सान हुआ और चोट भी लगी। अब अगर इस केस में हमारी ओर से टक्कर मारने वाले पर केस किया जाता तो उस का लाखों डॉलर का खर्च आता क्यूँकि उसे “भगोड़ा” माना जाता और उसे भारी हर्जाने के साथ साथ अगली बार इंश्योरेंस करवाने पर दोगुना प्रीमियम देना पड़ता और यह एक्सीडेंट उसके ड्राइविंग लाइसेंस की रेटिंग नेगेटिव कर देता। ऐसी स्थिति से बचने के लिए ड्राइवर ने ख़ुद ही हमारी सहायता की। मेडिकल खर्च, हमारी कार का रिपेयर बिल, जितने दिन हमारी कार रिपेयर पर रही उतने दिनों के लिये टैक्सी का प्रबंध सब सामने वाली पार्टी द्वारा अपने खर्च पर किया गया जो कि “भगोड़ा केस” में होने वाले खर्च के मुक़ाबले काफ़ी कम था। भारत में भी कुछ ऐसा ही “हिट एंड रन” क़ानून बनाया गया है जिसका कि पहले ही दिन से “अन्ध विरोध” शुरू हो गया है। सीधा सीधा क़ानून है कि आपसे कोई दुर्घटना होने पर आप चौबीस घण्टे के अन्दर अन्दर नज़दीकी पुलिस स्टेशन में जाकर रिपोर्ट कीजिए अन्यथा आपको भगोड़ा माना जाएगा और आपको भारी जुर्माना और जेल हो सकती है। इसमें ग़लत क्या है?
हमारे ड्राइवर भाइयों का कहना है कि वे इस क़ानून को नहीं मानेंगे!
क्यूँ नहीं मानेंगे?
क्यूँकि ये काला क़ानून है!
कैसे काला क़ानून है?
इसमें ड्राइवर के लिए दस लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है! “गरीब ड्राइवर” दस लाख रुपये कहाँ से लाएगा! अरे भाई जुर्माना और सज़ा तो भगोड़ा ड्राइवर के लिये है, अगर आप स्वयं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की सहायता करोगे और स्वयं ही केस दर्ज करवाओगे तो आप पर केवल क़ानून के अनुसार ही कार्रवाई होगी और जिसकी गलती है उसे ही सज़ा मिलेगी!
विरोधियों का कहना है कि लेकिन अगर दुर्घटनास्थल से भागेंगे नहीं तो आस पास की पब्लिक ड्राइवर को पीटेगी!
क़ानून में ऐसा कहाँ लिखा है कि घटनास्थल पर ही खड़े रहो? अगर दुर्घटनास्थल पर भीड़ है और ड्राइवर की जान को ख़तरा है तो वहाँ से निकल जाओ। लेकिन वहाँ से निकल कर सीधे पास के पुलिस स्टेशन जाओ। इसमें भी कोई समस्या है क्या? और अगर दुर्घटनास्थल पर आपके और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अलावा और कोई नहीं है और आपको कोई ख़तरा नहीं है तो आप ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की सहायता कीजिए और पुलिस को सूचित कीजिए! इंसानियत के नाते इतना भी नहीं करना चाहते आप? आखिर क्यों? जो लोग बड़े बड़े आढ़तिए हैं, अगर देखेंगे तो उनमें से ही काफ़ी लोग ट्रांसपोर्टर भी हैं। यानी यही वो बिचौलिये हैं जो किसान का हक़ खाते थे। यही किसान आंदोलन के पीछे वाले लोगो में से थे यही लोग अब अपने ड्राइवर्स को भड़का कर खड़ा कर दिये हैं जाम लगाने को।
यह कानून पहले भी था दो लाख का, तब दो लाख भी किए थे क्या?
इन्शुरन्स पालिसी या ट्रक मालिक को ही खर्चा उठाना पड़ता था कल भी और आगे भी समस्त खर्चा उठाना पड़ेगा
नहीं नहीं! ये मोदी सरकार ड्राइवर विरोधी है! हम तो हड़ताल करेंगे! चक्का जाम करेंगे! इस मोदी को मज़ा चखा देंगे! सड़कों पर किसी माल की कोई ढुलाई नहीं होगी! “नो ड्राइवर, नो ट्रांसपोर्ट!”
सवाल ये है कि ड्राइवर्स के पीछे अबकी ’टिकैत’ कौन है..?!