के. विक्रम राव
भारत के प्रगाढ़ मित्र शेरिंग तोबगे भूटान के प्रधानमंत्री चुने गए। पाँच वर्ष सत्ता से बाहर रहे थे। उन्होंने वामपंथी माओ-समर्थक भूटान टेंड्रिल पार्टी को परास्त कर दिया। दो तिहाई संसदीय सीटें जीती। इस मतदान से यही साबित हुआ कि इस हिमालयी राजतंत्र में प्रजातंत्र सबल है। भारत का हित इसलिए हुआ है क्योंकि पड़ोसी चीन भूटान के डोकलाम को अपना बताता है। यह अत्यंत संवेदनशील भूभाग भारत के लिए सैन्य और सीमा सुरक्षा दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। इसी के पास एक त्रिकोण बनता है भारत, चीन और भूटान वाला। पूर्वोत्तर भारत (असम और अन्य प्रदेश) को जोड़ने वाला “सिलीगुड़ी गलियारा” “चिकन्स नेक” (मुर्गी की गर्दन) रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिए बड़ा खास है। चीन की दृष्टि उसी पर रहती है, अतः वह एक खतरा बना रहता है। इस संदर्भ में राजधानी थिंपू में एक मित्रवत शासन भारत के हित में है। भूटान से भारत का “विशेष संबंध” है। दोनों रक्षा और विकास को साझा करते हैं। भूटान की विदेश नीति, रक्षा और वाणिज्य पर भारत का सहयोग है।
यही कारण रहा कि भूटान भारत के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार से करीबी बनाएं रखता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले विदेशी गंतव्य के रूप में भूटान को चुना था। उन्होंने भूटान में सुप्रीम कोर्ट परिसर का उद्घाटन किया और आईटी और डिजिटल क्षेत्रों में भूटान को मदद का वादा भी किया। यह यात्रा राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक और टोबगे के निमंत्रण के बाद हुई थी। इस यात्रा को मीडिया ने “आकर्षक आक्रामक” कहा था। इसका उद्देश्य भूटान-चीन संबंधों की जांच करना भी होगा। उन्होंने व्यावसायिक संबंध बनाने की भी मांग की, जिसमें जल-विद्युत सौदा भी शामिल था, और भारत द्वारा वित्त पोषित भूटान सुप्रीम कोर्ट भवन का उद्घाटन किया।
भारत-भूटान दोस्ती के संदर्भ में शेरिंग तोबगे का दुबारा सत्ता पर आना और प्रधानमंत्री बनना हमारे राष्ट्रहित में है। बात 2013 की है। तब इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के 85-सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल राजधानी थिंपू तथा पारो गया था। इसमें उत्तर प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष साथी हसीब सिद्दीकी के नेतृत्व में 40 प्रतिनिधि भी शामिल थे। उन्हें इस सद्भावना यात्रा हेतु समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने मदद भी की थी। तब थिंपू में प्रधानमंत्री तोबगे ने IFWJ के प्रतिनिधियों के सम्मान में समारोह रखा था। जब उन्हें पता चला कि मैं 1965 में भूटान आया था, (तब धर्मयुग के संपादक स्व. डॉ. धर्मवीर भारती के अनुरोध पर भूटान-भारत पर लिखने मैं गया था। मैं मुंबई “टाइम्स आफ इंडिया” में कार्यरत था।) : प्रधानमंत्री की तत्काल प्रतिक्रिया थी : “मैं यह फोटो अपनी मां को दिखाऊंगा कि मैं उस व्यक्ति से मिला जो मेरे जन्म के पूर्व भूटान आया था।” सितंबर 19 को 1965 में जन्मे शेरिंग तोबगे की मां एक मजदूर थी। जिसने भारत-भूटान सड़क निर्माण में दिहाड़ी का काम किया था। उनके पिता भूटान फौज में सैनिक थे।
राजनीतिज्ञ, पर्यावरणविद् और सांस्कृतिक अधिवक्ता हैं तोबगे जो जुलाई 2013 से अगस्त 2018 तक भूटान के प्रधान मंत्री थे। वे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं, और मार्च 2008 से अप्रैल 2013 तक नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता भी थे। उन्होंने पूर्वी हिमालय में भारत के कलिम्पोंग के डॉ. ग्राहम होम्स स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। संयुक्त राष्ट्र से छात्रवृत्ति प्राप्त करने के बाद 1990 में, पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के स्वानसन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तोबगे ने 2004 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से सार्वजनिक प्रशासन में मास्टर डिग्री भी पूरी की। आठ वर्ष बीते (2015 में) “वाइब्रेंट गुजरात” समारोह में गांधीनगर में इस भूटानी प्रधानमंत्री ने शिरकत की थी। उसमें विश्व के प्रमुख उद्योगपतियों को भूटान के साथ व्यापार के लिए आमंत्रित किया था। कल (9 फरवरी 2020) नरेंद्र मोदी ने फिर उसी “वाइब्रेंट गुजरात” का आयोजन किया था।
इस प्रधानमंत्री का भूटान नागरिकों की खुशहाली के स्तर को मापकर समृद्धि मापता है, न कि आय या व्यक्तिगत संपत्ति से। कुछ बुनियादी भौतिक ज़रूरतें पूरी होने के बाद, भौतिक वस्तुओं की अधिक खपत अधिक खुशी की गारंटी नहीं देती है। इसके अलावा पारिस्थितिक अर्थशास्त्री बताते हैं, सकल घरेलू उत्पाद और जीवन स्तर के बीच संबंध तब टूट जाता है जब किसी देश को सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए अपना खर्च बढ़ाना पड़ता है। केवल सकल राष्ट्रीय खुशहाली को बढ़ावा देने के बजाय, तोबगे का मानना है कि जीएनएच के सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिए, और कुछ महत्वपूर्ण समस्याएं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। वे हैं युवा बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय ऋण। तोबगे भूटान सरकार में भ्रष्टाचार को रोकने और भूटानी आबादी के साथ बातचीत करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। मानवाधिकार भी तोबगे की एक विचारधारा है, हालांकि उन्होंने भूटान में समलैंगिक अधिकारों के बारे में सर्वाधिक सार्वजनिक रूप से बात नहीं की है। समलैंगिक कृत्य पहले अवैध थे, क्योंकि ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा कानून लागू किया गया था। सामरिक दृष्टि में भूटान-भारत की हिमालय नीति का अनिवार्य अंग है। याद रखें माओ जेडोंग ने कहा था : “तिब्बत चीन की कटी हुई हथेली है जो 1949 में जुड़ गई। अब पांच उंगलियां हैं जोड़ने हेतु : अंगूठा (नेपाल), तर्जनी (भूटान), मध्यमा (अरुणाचल प्रदेश), अनामिका (लद्दाख) और छंगुनी (सिक्किम)। इस नजरिए से शेरिंग तोबगे का प्रधानमंत्री फिर बनना भारत के सीमा प्रहरी की भूमिका सबल बनाता है।