गुरु गोविंद सिंह जयंती आज है, जानिए शुभ तिथि और विवाह व स्थापना…

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता 

गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता है। वे एक महान योद्धा तो थे ही, लेकिन साथ ही एक महान कवि-लेखक भी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। वह संस्कृत के अलावा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। कई सारे ग्रंथों की रचना गुरु गोविंद सिंह द्वारा की गई, जो समाज को काफी प्रभावित करती है। खालसा पंथकी स्थापना जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, इन्ही के द्वारा किया गया। गुरु गोविंद साहब ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथसाहिब की स्थापना की थी ,वे मधुर आवाज के भी धनी थे। इसके साथ ही सहनशीलता और सादगी से भरे थे। गरीबों के लिये वे हमेशा लड़े और सबको बराबर का हक देने को कहा करते थे और भाईचारे से रहने का संदेश देते थे।

गुरु गोविंद सिंह जयंती की तिथि

गुरु गोविंद सिंह की 357 वीं जन्म वर्षगांठ

गुरु गोविंद सिंह जयंती बुधवार, 17 जनवरी 2024

सप्तमी तिथि प्रारम्भ : 16 जनवरी 2024 को रात 11:57 बजे

सप्तमी तिथि समाप्त: 17 जनवरी 2024 को रात 10:06 बजे

 गुरु गोविंद सिंह  का जन्म और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

गुरु गोविंद सिंह साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को बिहार के पटना शहर में श्री गुरु तेग बहादुर के यहां हुआ था, जो सिख समुदाय के नौवें गुरु थे। उनकी माता का नाम गुजरी देवी था। बचपन में वे गोविंदराय के नाम से जाने जाते थे। अपने जीवन के शुरुआती 4 वर्ष उन्होंने पटना के घर में ही बिताए, जहां उनका जन्म हुआ था। बाद में 1670 में उनका परिवार पंजाब मे आनंदपुर साहब नामक स्थान पर रहने आ गया था। जो पहले चक्क नानकी नाम से जाना जाता था। यह हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों मे स्थित है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत चक्क नानकी से ही हुई थी। एक योद्धा बनने के लिये जिन कला की जरूरत पड़ती है, उन्होंने यही से सीखी। उसके  साथ ही संस्कृत, और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था।

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एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फ़रियाद लेकर श्रीगुरु तेग बहादुर के दरबार में आए। दरबार में पंडितों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने की बात कही। साथ ही कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है, अगर धर्म परिवर्तन नहीं किया तो हमें प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे। ऐसा कोई महापुरुष हो, जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करे और अपना बलिदान दे सके, तो सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।  उस समय गुरु गोविंद सिंह जी नौ साल के थे। उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है! कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुनकर गुरु तेग बहादुर ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दिया। लोगों को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में आम लोगों के सामने उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद 29 मार्च 1676  में श्री गोविन्द सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया।

गुरु गोविंद सिंह का विवाह

गुरु गोविंद सिंह जी का पहला विवाह 10 साल की उम्र में ही हो गया था। 21 जून, 1677 के दिन माता जीतो के साथ आनन्दपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में विवाह सम्पन्न हुआ था। गुरु गोविंद सिंह और माता जीतो के 3 पुत्र हुए जिनके नाम जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह थे। 17 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ 4 अप्रैल, 1684 को आनन्दपुर में ही हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। उसके बाद 33 वर्ष की आयु में तीसरा विवाह 15 अप्रैल, 1700 में माता साहिब देवन के साथ किया। वैसे तो उनकी कोई सन्तान नहीं थी, पर सिख पन्थ के पन्नों और गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन में उनका भी बहुत प्रभावशाली स्थान था। इस तरह से गुरु गोविंद साहब की कुल 3 शादियां हुई थी।

खालसा पंथ की स्थापना

सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायी विधिवत् दीक्षा प्राप्त करते है। सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोविंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया, पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी तरह पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे ,तो उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

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उसके बाद गुरु गोविंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दो-धारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा बनने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया, जिसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कछैरा। तभी से सिख समुदाय अपने साथ कहा-केश, कंघा, कड़ा, किरपान (कृपाण), कछैरा (कच्छा) अपने साथ रखते है ।

बहादुर शाह जफ़र के साथ गुरु गोविंद सिंह के रिश्ते

जब औरंगजेब की मृत्यु हुई, उसके के बाद बहादुरशाह को बादशाह बनाने में गुरु गोविंद सिंह  ने मदद की थी। गुरु गोविंद जी और बहादुर शाह के आपस मे रिश्ते बहुत ही सकारात्मक और मीठे थे। जिसे देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खां डर गया। अपने डर को दूर करने के लिये उसने अपने दो आदमी गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन दो आदमियों ने ही गुरु साहब पर धोखे से वार किया, जिससे सात अक्टूबर 1708 को गुरु गोविंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। उन्होंने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों के ईंट का जवाब पत्थर से दिया ।

 गुरु गोविंद साहब द्वारा दिए गये उपदेश

गुरु गोविंद सिंह के दिए उपदेश आज भी खालसा पंथ और सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

बचन करके पालना

अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा।

किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना

किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।

कम करन विच दरीदार नहीं करना

काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।

गुरुबानी कंठ करनी

गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।

दसवंड देना

अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।

गुरु गोविंद सिंह की रचनाएं

गुरु गोविंद सिंह जी ने न सिर्फ अपने महान उपदेशों के द्वारा लोगों को सही मार्गदर्शन दिया, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध किया। उनके द्वारा लिखी कुछ रचनाएं इस प्रकार से हैं-

  •  जाप साहिब
  • अकाल उत्सतत
  • बचित्र नाटक
  • चंडी चरित्र
  •   जफर नामा
  • खालसा महिमा

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