- सती प्रसंग मेंं शिव की भूमिका
- पार्वती की दृढ़ इच्छा शक्ति
बीके मणि त्रिपाठी
शिव और पार्वती के गृहस्थ जीवन को संकेत कर हमें गृहस्थी के बहुत सारे रहस्य समझा दिया गये। जो हमें जीवन भर काम आएं। शिव की पत्नी सती दक्ष प्रजापति की कन्या थी वह भी बड़ी धूम धाम से हुई। शिव सती बड़े प्रेम से रहते थे। पर ससुर दक्ष दामाद से सम्मान चाहते थे। इसलिए जब ब्रह्म सभा मे उनके आने पर शिव सम्मान के लिए नहीं खड़े हुए,इस पर वे झल्ला गए और बहुत कुछ बुरा भला कहा। यह द्वेष पाले रहे और जब यज्ञ आयोजित किया तो सब बेटी दामादों को बुलाया पर शिव- पार्वती( बेटी -दामाद) को नहीं बुलाया। जब बेटी पिता के घर को अपना समझ कर गई तो शिव (पति) का अपमान उसे बरदाश्त नहीं हुआ। परिणाम स्वरुप योगाग्नि मे भस्म होगई। दक्ष को भी शिव गणो ने दंड दिया। बाद मे सास के अनुनय पर शिव ने बकरे का मस्तक उनके धड़ पर लगाया।
हिमांचल विनम्र थे। पार्वती का विवाह धूम धाम से हुआ। मैना,पार्वती की मां, पहले तो शिव का अघोरी रूप देख घबराई। फिर देवर्षि के समझाने पर शांत हुई तो आजीवन बेटी- दामाद का सम्मान किया। शिव पार्वती की गृहस्थी बिना किसी गतिरोध के प्रेम पूर्वक चली। सती ने राम के वनवास के समय सीता की खोज करते हुए रोते देख जो संशय व्यक्त किया था,उसका निराकरण शिव ने सती के अगले जन्म मे किया। सती ही पार्वती के रूप मे जन्मी थी। यह रहस्य शिव जानते थे। राम कथा सुनने की पार्वती की जिज्ञासा का शिव ने कथा सुना कर शमन किया। बाद मे अनेक ऐसे प्रसंग आए जब देवी पार्वती के दश महाविद्या के रूप मे और अन्नपूर्णा के रूप मे विविध रूप देखने को मिले। मां का सौम्य हो या उग्र रूप सबके लिए आराध्य और मनोकामनायें पूरी करने वाला सिद्ध हुआ।
लोकोपकार के लिए शिव का गरलपान करने और उसे कंठ मे धारण करने के प्रसंग मार्मिक हैं। संतान भी उन्होंने लोकोपकार के लिए ही उत्पन्न किया। षड़ानन और गणेश का अवतरण विशेष प्रयोजन से हुआ। यह सबको विदित है। माता पिता की सेवा कर गणेश आदिदेव बने। जो परम बुद्धिमान सिद्ध हुए.. और माता पिता के आशीर्वाद से ऋद्धि- सिद्धि के स्वामी बने। यह आने वाले हर युगों में संतानो के लिए आदर्श है। षडानन देवताओं के सेनापति के रूप मे उग्र थे। पिता से अटस रखते थे। उसके कारण उनकी गृहस्थी नहीं सजी।