आमलिक या रंगभरी एकादशी आज  है जानिए शुभ तिथि व पूजा विधि और महत्व…

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की उपासना का विशेष महत्व है। गुरुवार के साथ ही एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने बड़ा महत्व है। इससे भगवान प्रसन्न होने के साथ ही सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। माह में दो और पूरे साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी का व्रत  करने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर रंगभरी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन विष्णु जी के साथ महादेव की पूजा का खास महत्व है।

रंगभरी एकादशी की तिथि

इस फाल्गुनी माह में एकादशी का व्रत 20 मार्च को रखा जाएगा। इसे रंगभरी और आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी की तिथि 19 मार्च की रात 12 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 20 मार्च को रात 2 बजकर 23 मिनट पर सामाप्त होगी। ऐसे में एकादशी का व्रत पुष्य नक्ष में 20 मार्च को रखा जाएगा। साथ ही व्रत का पारण अगले दिन 21 मार्च को सुबह 9 बजे से पहले किया जाएगा।

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रंगभरी एकादशी की पूजा विधि

रंगभरी एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। लोटे में जलकर भरकर इसमें थोड़ा सा गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, शहद और अक्षत को मिलाकर भगवान शिव के मंदिर में शिवलिंग पर अभिषेक करें। इस दिन महिलाएं व्रत करने के साथ ही माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें। साथ ही शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें। इससे भगवान शिव आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करेंगे। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को भी जन्म दिया। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन लोग भगवान विष्णु का आराधना कर उपवास करते हैं और आवंले के वृक्ष की पूजा करते हैं। भारत में आवंले के पेड़ को आमलकी भी कहा जाता है। भगवान विष्णु के इस पेड़ में वास करने से यह बहुत ही शुभ और पूजनीय माना जाता है। आमलकी एकादशी का व्रत करने से समस्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होने के साथ भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है।

आमलकी एकादशी का महत्व

हिंदू पंचाग के अनुसार, दूसरे त्यौहारों की तुलना में आमलकी एकादशी के दिन का सबसे अधिक महत्व होता है। होली के लोकप्रिय त्यौहार की शुरुआत भी आमलकी एकादशी को मानी जाती है। भगवान को संदर्भित करते हुए इस पेड़ की पूजा करना व्यापक परिप्रेक्ष्य से हिंदू धर्म के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्वों में से एक माना जाता है। इस दिन जो भी इच्छा मन में लेकर उपवास करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हिन्दू मान्यतानुसार देवी लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है। आमलकी एकादशी के दिन व्रत करने से देवी लक्ष्मी उनकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करती है। इसके अलावा, यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण जो कि भगवान विष्णु का अवतार थे अपनी प्रेमिका राधा के साथ आवंले के पेड़ के पास मिलने जाया करते थे। इस वजह से इस दिन की महत्वता और बढ़ जाती है। जो भी आमला के पेड़ से प्रार्थना कर रहे होते हैं उन लोगों के मन की हर मुराद पूरी हो जाती है। आंवला का पेड़ औषधिय परिप्रेक्ष्य से सबसे महत्वपूर्ण है। यह स्वास्थ्य लाभ भी देता है। आवंला के पेड़ से कई प्रकार की जड़ी-बूटियां बनाई जाती हैं। आवंला के पेड़ का उपयोग बड़े पैमाने पर आधुनिक दवाओं के निर्माण के लिए किया जाता है जो विटामिन सी का स्त्रोत होती हैं।

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आमलकी एकादशी से जुड़ी कथाएं

हिन्दू मान्यतानुसार आमलकी एकादशी से जुड़ी कथा काफी प्रचलित है एक बार मांधाता ने महर्षि वशिष्ठजी से ऐसे व्रत की कथा सुनाने का आग्रह किया जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो। तब महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें आमलकी एकादशी की कहानी सुनाते हुए कहा कि एक वैदिश नाम का नगर था जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित रहते थे। उस नगर में सदैव वेद ध्वनि गूंजा करती थी तथा पापी, दुराचारी तथा नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उस नगर में चैतरथ नाम का चन्द्रवंशी राजा राज्य करता था। वह अत्यंत विद्वान तथा धर्मी था। उस नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र व कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से आंवले का पूजन करने लगे और स्तुति करने लगे। तभी वहां एक भूखा शिकारी आ गया और उसने भी बैठ कर मन से कथा सुनी। जिसके कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उसने एक राजा के यहां जन्म लिया और अन्न, धन बल, साहस से परिपूर्ण रहा। एक बार जब वो थक कर जंगल में ही विश्राम करने लगा तो जिन लोगों को उसने मारा था उनके सम्बधीं उसे मारने आए तभी वहां देवी प्रकट हुई और देवी ने उन लोगों का सर्वनाश कर दिया। जब उस राज की आंख खुली तो उसने पूछा मेरी मदद किसने की। तब आकाशवाणी हुई कि यह तुम्हारे आमलकी एकादशी करने का फल है तुम्हारी रक्षा स्वंय भगवान विष्णु ने की है। तभी से इस व्रत को किया जाने लगा। इस व्रत के करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का फल एक हजार गोदान के फल के बराबर होता है।

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