- कुंडली में हों ऐसे योग तो संन्यासी बनकर नाम और यश पाएंगे
जयपुर से राजेंद्र गुप्ता
गीता में कहा गया है कि मनुष्य अपने पूर्वजन्म के कर्मों से वर्तमान जीवन को पाता है और अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़कर सफलता प्राप्त करता है। कुछ लोग आध्यात्मिक जगत से जुड़कर भी महान और प्रसिद्ध हो जाते हैं ओशो, रामकृष्ण परमहंस, रविशंकर भी ऐसे ही लोगों में से हैं। दरअसल इन सब के पीछे उनकी जन्मपत्री में मौजूद ग्रहों की खास स्थिति होती है जो संन्यास योग बनाकर मनुष्य को आध्यात्मिक जगत में महान और सफल बना देती। ज्योतिषशास्त्री ‘सचिन मल्होत्रा’ बताते हैं कि अगर आपकी जन्मपत्री में भी ऐसे योग हैं तो समझ लीजिए आप भी भौतिक जगत से अलग आध्यात्म की दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल होंगे।
ओशो और गौतम बुद्ध की कुंडली में था यह योग
यदि जन्म कुंडली में चार या चार से अधिक ग्रह किसी भाव में एकत्र हों तो प्रबल संन्यास योग बनता है। इस योग में यदि कोई ग्रह सूर्य से अस्त न हो तथा दशमेश भी इस योग में सम्मलित हो जाए तो जातक विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक व्यक्ति हो सकता है। भगवान गौतम बुद्ध की कर्क लग्न की कुंडली में दशम भाव में पांच ग्रह संन्यास योग निर्मित कर रहे थे। आचार्य रजनीश (ओशो ) की वृषभ लग्न की कुंडली में अष्टम भाव में पांच ग्रह मिल कर संन्यास योग बना रहे थे। इन दोनों महापुरुषों की कुंडली में दशमेश भी इस संन्यास योग में सम्मिलत था।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कुंडली में था यह योग
चन्द्रमा यदि शनि या मंगल के द्रेष्काण में होकर मात्र शनि से दृष्ट हो तो भी जातक संन्यासी हो सकता है। यदि चन्द्रमा शनि या मंगल के नवांश में हो कर शनि से दृष्ट हो तब भी संन्यास योग बनता है। यह योग स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कुंडली में बन रहा था।
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चंद्रमा हो यदि इस स्थिति में : कर्क, धनु या मीन लग्न में शनि लग्न, गुरु और चंद्र तीनों को अपनी दृष्टि से प्रभावित करे तो संन्यास योग बनता है। इन लग्नों में यदि गुरु नवम भाव में स्थित हो तथा शनि लग्न को देखे तो भी संन्यास योग बनता है।
अरविंदो की कुंडली का योग
पंचमेश और नवमेश की युति व्यक्ति को ज्ञान मार्ग से चेतना के विकास की ओर ले कर जाती है। अरविंदो की कर्क लग्न की कुंडली में पंचमेश मंगल और नवमेश गुरु की लग्न में बन रही युति ने उन्हें एक उच्च कोटि का आध्यात्मिक चिंतन और लेखक बनाया।
ऐसे जातक करते हैं गहन साधना
चन्द्रमा का राशि स्वामी यदि मात्र शनि से दृष्ट हो या वह केवल शनि को देखे तो भी संन्यास योग होता है। इस योग में यदि नवमेश और पंचमेश भी बलवान हों तो जातक गहन साधना और एकांत के लिए लालायित रहता है।
मोक्ष पाने की इच्छा रखते हैं ऐसे जातक
लग्न के बाहरवें घर में केतु मात्र शुभ ग्रहों, विशेषकर गुरु, से दृष्ट हों तब जातक मोक्ष पाने की इच्छा रखता है। यह योग मृत्यु के बाद जातक की आत्मा के उच्च योनियों में जाने का ज्योतिषीय संकेत है। कारकांश लग्न से बाहरवें घर में केतु यदि शुभ ग्रहों से देखा जाये तो जातक उच्च कोटि की साधना करने का इच्छुक होता है।
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स्वामी प्रभुपाद जी की कुंडली थी ऐसी
सूर्य और गुरु की युति धार्मिक स्थानों में सेवा करने या पूजा स्थलों के निर्माण का एक अति महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योग है। यह योग मकर लग्न की स्वामी प्रभुपाद जी की कुंडली में था जिन्होंने पिछली सदी में अनेक राधा-कृष्ण मंदिरों का विश्वभर में निर्माण करवाया।
ऐसा व्यक्ति मंत्र साधना में होता है प्रवीण
केतु और गुरु यदि कुंडली में एक साथ हों कर पंचम या नवम भाव से सम्बन्ध बनायें तो व्यक्ति मन्त्र साधना में प्रवीण होता है। इस योग में यदि जन्म लग्न या कारकांश लग्न से त्रिकोण में पाप ग्रह हों तो जातक तंत्र साधना की ओर भी जा सकता है।
धर्म त्रिकोण ले जाता है आधात्मिक उन्नति की ओर
कुंडली में धर्म त्रिकोण ( लग्न , पंचम और नवम ) तथा मोक्ष त्रिकोण ( चतुर्थ , अष्टम और द्वादश ) की स्वामियों का सम्बन्ध जातक को जीवन में आधात्मिक उन्नति की ओर ले कर जाता है। यह योग जन्म लग्न और चंद्र लग्न दोनों से देखा जाना चाहिए।