- होली का अद्भुत त्योहार
- एक तरफ राक्षस बध दूसरी तरफ बसंतोत्सव
- प्रह्लाद के बचने का जश्न दूसरी तरफ रंग भरी होली
होली की तैयारियां जोर शोर से शुरू होगई हैं। जगह जगह निर्धारित स्थलों पर सम्मत गड़ गए हैं। लकड़िया और कबाड़ इकट्ठा होर हे हैं। मान्यता के अनुसार घटना सतयुग मे घटी। राक्षस कुल के हिरण्याक्ष और हिरण्य कसिपु दो सगे भाईथे। हिरण्याक्ष ने वेद और धरती चुरा ली उन पर कब्जा कर सृष्टि का स्वामी बनना चाहता था। जिसके लिए वराह अवतार हुआ और भगवान ने उसे मार कर वेद वापस लाए और धरती को समुद्र के गर्भ से बाहर निकाला।
हिरण्य कशिपु भी बड़ा प्रतापी था। पर उसके ही बेटे प्रहलाद ने देवर्षि नारद के प्रभाव मे श्रीहरि का भक्त बन कर पिता कौ छका दिया। वह अपने बेटै को मारने का यत्न करं लगा। अंतत: सब करके हार गया नही मार सआ। तो उसकी बहन ने प्रहलाद को गोद मे लेकर आग मै लेकर बैठने की ठानी। क्यों कि उसे आग मे न जलने का बरदान था। सम्मति की वही आग जी। प्रह्लाद को गोद मेलेकर बैठने वाली उसकी बुआ आग मै जल मरी,पर प्रह्लाद बच गया। फाल्गुन सुदी पूर्णिमा की रात यह घटना घटी।
इसीलिए सम्यत मे सभी अलावन डालते है और हौलिका दाह कर प्रह्लाद के बच जानै का जश्न मनाते हैं। अंत मे निराश होकर हिरण्य कशिपु लोहे के जंजीर मे प्रह्लाद कौ बांध कर तलवार से मारने कौ उद्यत होजाता है। तब खंभा फाड़ कर भगवान नृसिंह प्रकट होजाते है। दरवाजे की जगत पर बैठ कर हिरण्य कशिपू कौ गोद मे लिटा कर उसका पेक नाखून से फाड़ देते है और लहू पीलेते हैं। आंतो की माला धारण करते है। उनका विकराल रूप देख सभी डर जाते है। भगवान नृसिंह प्रह्लाद को लेकर वात्सल्य वश चाटने लगते हैं। कहते है “क्षमा करना बेटा मेरे आने मे बिलंब हुआ। प्रह्लाद ने अपने पिता की मुक्ति मांगी “और फिर हजारो वर्ष तक राज्य किया। इस तरह राम नाम की समाज मे प्रतिष्ठा हुई।