एक था मुख्तारः कौन था अंसारी और कहां से प्रचलन में आया ‘माफिया’ शब्द

  • ‘बुलेट, बम और बैंक बैलेंस के विरोधी ‘बाबा’ के आने के बाद सलाखों के पीछे पहुंचा था मुख्तार

विनय प्रताप सिंह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश से जरायम का एक और अध्याय बंद हो गया। पूर्वांचल का सबसे कुख्यात माफिया को बुंदेलखंड के बांदा जेल में हार्ट अटैक आया और उसका इंतकाल हो गया। इसकी खबर मिलते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आवास यानी 5-KD पर अफसरों को बुलाया और ताकीद किया कि कहीं भी अशांति नहीं होनी चाहिए। पूरे सूबे में धारा 144 लगा दी गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुख्तार कौन था और उसका इतिहास, भूगोल क्या था?

गाजीपुर जिले की युसूफपुर बस्ती में करीब 62 साल पहले मुख्तार अंसारी का जन्म हुआ था। मुख्तार के अब्बा काजी सुभानउल्ला अंसारी अच्छे जोतदार थे। उनके चचेरे दादा साल 1927 में राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली उनके करीबी सम्बन्धी हैं। ओड़ीशा के दिवंगत राज्यपाल शौकतुल्लाह अंसारी तथा पूर्व उप राष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी मुख्तार के चाचा हैं। उनके एक खास चाचा मरहूम आसिफ अंसारी हाईकोर्ट के जस्टिस थे।

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मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी तालीम के दौरान ही राजनीति में कूद पड़े थे। साल 1985 से 1993 तक वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से लगातार चार दफे विधायक रहे। वर्ष 1996 के मध्यावधि चुनाव में वह सपा की साइकिल से विधानसभा पहुंच गए थे। अफजाल एक बार गाजीपुर के सांसद भी रहे। बड़े भाई के इसी राजनीतिक रसूख का फायदा उठाते-उठाते मुख्तार अपराधी बन गया। साल 1985 के पीजी कॉलेज चुनाव में बृजेश सिंह और मुख्तार में ऐसी ठनी कि कालांतर में दोनों के बीच खूनी खेल हो गया। यह दुश्मनी इतनी आगे बढ़ी कि एके-47, बम, बारूद सब चल गया था। लम्बा कद, रोबीला चेहरा, तंदरुस्त बदन और मिलनसार व्यवहार के धनी मुख्तार अंसारी को देखकर कोई अपराधी नहीं कह सकता। लेकिन उसे जानने के लिए 1991 की दुनिया में लौटना होगा।

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गाजीपुर के रणजीत सिंह से मुख्तार का छत्तीस का रिश्ता था। अनगिनत प्रयास के बाद जब मुख्तार उन्हें ठिकाने नहीं लगा सका तो उसने एक गुप्त योजना गढ़ी। रणजीत का मकान बहुत बड़ा था। उसके बगल में एक मल्लाह को डरा-धमकाकर उस फ्लैट को खरीद लिया। इसकी भनक रणजीत को नहीं थी।  मुख्तार ने मल्लाह के मकान की उस दीवार में एक छेद किया, जो रणजीत सिंह की हवेली से लगी हुई थी। अंतत: दीवार में किए गए छेद से निशाना साधकर रणजीत को मुख्तार ने साफ कर डाला था। इस वारदात में पुलिस ने उसे नामजद अभियुक्त बनाया था। जब कल्याण सिंह यूपी से सीएम थे, तब मुख्तार ने चंडीगढ़ में शरण ले रखी थी।

पुलिस के मुताबिक इसी दरमियान उसने पंजाब के आतंकवादियों के जरिए एके 47 हासिल की थी। वर्ष 1993 में मुख्तार ने दिल्ली के व्यवसायी वेद प्रकाश गोयल की किडनैपिंग चारों ओर सनसनी फैला दी थी। गोयल जी टीवी के संचालक भी थे। उनकी रिहाई के एवज में अंसारी ने एक करोड़ रुपये की मांग की थी। मगर पुलिस ने उसे 11 सितंबर, 1993 को तब रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था जब दिल्ली के कालकाजी में बहाई मंदिर के नजदीक वे रकम वसूलने गए थे। पुलिस ने इसके बाद गोयल को चंडीगढ़ से मुक्त कराया था। उसके बाद मुख्तार को ‘टाडा’ के तहत तिहाड़ जेल में डाला गया था।

 ‘बाबा’ बुलेट, बम और बैंक बैलेंस के विरोधी क्यों?

योगी आदित्यनाथ के बारे में ‘नया लुक’ ने खोजबीन की तो पाया कि बाबा 3-बी यानी बुलेट, बम और बैंक बैलेंस (माफियागिरी की बदौलत) के सख्त विरोधी हैं। आखिर ऐसा क्यों? दरअसल यह कहानी है कि साल 2006 की, तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा के स्पीकर हुआ करते थे और योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से लोकसभा के सदस्य। लोकसभा में योगी को अपनी बात रखने का अध्यक्ष ने विशेष वक्त दिया था। योगी अपनी कथा सुनाते हुए लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष हाउस के भीतर फूट-फूटकर रोए थे। कथा के मुताबिक़ पूर्वांचल में आज़मगढ़ के छात्रनेता रहे अजीत सिंह की हत्या कर दी गई थी। अजीत की तेरहवीं में शामिल होने के लिए योगी अपने काफिले के साथ सडक़ मार्ग से आज़मगढ़ जा रहे थे। रास्ते में तकिया गांव में योगी के काफिले पर हमला कर दिया गया था। उस हमले में योगी के कई समर्थक लहुलूहान हो गए थे। योगी के सरकारी अंगरक्षकों ने उनकी जान बचाने के लिए भयंकर फ़ायरिंग झोंक दी थी।

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फ़ायरिंग के दौरान हमलावर भीड़ में एक युवक की मौत हो गई थी। लिहाज़ा आज़मगढ़ और उसके इर्द-गिर्द के इलाक़ों में यह मामला साम्प्रदायिक रंग ले लिया था। नतीजतन सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के फऱमान पर योगी के समर्थकों और खुद योगी पर आपराधिक मामले लाद दिए गए थे। इसके बाद पीएसी की बदौलत योगी के ठिकानों पर ज़बरदस्त दबिश दी गई थी और उनके कई समर्थकों को जेल भेज दिया गया था। इस दौरान योगी को भी 11 दिनों तक जेल में बंद रहना पड़ा था। इसी के बाद योगी ने लोकसभा में अपनी पीड़ा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को सुनाई थी और उन्होंने योगी को अलग से पुलिस बल मुहैया कराई थी। इसी का परिणाम था कि तभी से योगी बुलेट, बम और बैंक बैलेंस जो अवैध ढंग से कमाई गई हो, उसके सख्त विरोधी हो गए। उन्होंने गोरखपुर मंदिर में प्रतिज्ञा की थी कि सत्ता की कमान उनके हाथों में आई तो वे माफिया को ज़मींदोज़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। आज उत्तर प्रदेश में वही हो रहा है।

कहां से आया ‘माफिया’ शब्द

माफिया अल्फ़ाज़ की बुनियाद 18वीं सदी में पड़ी थी। इसकी नींव इटली में डाली गई थी। दरअसल, उस दौरान जब फ्रांसीसियों ने सिसली पर विजय प्राप्त की थी, तो इटली में क्रांतिकारियों ने एक भूमिगत संगठन तैयार किया था, जिसे रू्रस्नढ्ढ्र कहा जाता था। यह अंग्रेज़ी के पाँच अक्षरों से मिलकर बना है।

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इसका मतलब यूँ- एम-मोर्टे, ए-अला, एफ-फ्रांकिया, आई- इटैलिना और ए-आमेल्ला। यानी इटली में आए हुए फ्रांसिसियों को मार दो। फ्रांस के अनेक सैनिकों तथा क्रांतिकारियों की हत्या इसी संगठन द्वारा की गई थी। फ्रांस के शासन का अंत हो गया। लेकिन इस ख़ूँख़ार संगठन की याद लोगों के ज़ेहन में सदा के लिए बैठ गई। कालांतर में सिसली के अपराधी संगठनों ने इस शब्द को हमेशा के लिए अपना लिया। उनमें अधिकांश अपराधी अमेरिका चले गए। अपराधियों ने संगठित अपराध के साथ माफिया अल्फ़ाज़ को जोड़ लिया। आहिस्ते-आहिस्ते यह शब्द हिंदुस्तान समेत पूरी दुनिया में प्रचलित होता गया और आज की तारीख़ में कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ के कामरूप तक अनेक माफिया डॉन हिंदुस्तान की सरज़मीं में कुंडली मारकर बैठे हुए हैं और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस माफिया के फन को कुचल रहे हैं।

 

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