दो टूक : मुख्तार की मौत पर इतनी हाय तौबा क्यों साहब,इसमें नया क्या?

राजेश श्रीवास्तव

दो दिन पहले उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में कुख्यात माफिया से सियासत तक का सफर तय करने वाले मुख्तार अंसारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी। इस मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया। इसी मात्र एक कारण के चलते पिछले दो दिनों से देश में कोहराम मचा है। पूरा देश दो भागों में बंट गया है, एक कह रहा है कि मुख्तार की मौत खाने में जहर देने की वजह से हुई, जिसका आरोप खुद मुख्तार ने कोर्ट को प्रार्थना पत्र देकर लगाया था, दूसरा भाग कह रहा है कि मुख्तार की मौत सामान्य है। दिलचस्प यह भी है कि एक वर्ग यह भी कह रहा है कि मुख्तार कौन सा अच्छा इंसान था, माफिया था मर गया तो मर गया, अफसोस क्यों । पर मेरा मानना है कि क्या देश में पहली बार इस तरह की मौत हुई है। उत्तर प्रदेश में इस तरह की मौतों की तो लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है।

कस्टडी में हुई मौतों की संख्या मामले में यूपी अव्वल नंबर पर है। दूर तक जाने की जरूरत क्या है। योगी राज में ही खुलेआम अतीक और अशरफ की गोलियों से तड़तड़ा कर मार दिया गया था । विकास दुबे की गाड़ी पलटी। मुख्तार को जेल में जहर देने का आरोप है। तो साहब इस पर कोहराम क्यों ? क्यों कहा जा रहा है कि संविधान नहीं है, लोकतंत्र नहीं है। अरे इसकी उम्मीद ही क्यों करना ? क्या बाकी मामलों में देश संविधान से चल रहा है ? लोग इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का आज भी उदाहरण देते हैं लेकिन मुझे तो लगता है जितना आपात काल में नहीं हुआ उससे ज्यादा आजकल बिना आपातकाल के हो रहा है। और जब जनता को भी पसंद है तो उसमें हैरानी क्यों, जनता बुलडोजर को पसंद कर रही है, जनता ठोको नीति को पसंद कर रही है।

फिर हाय-तौबा क्यों?

मुख्तार का मरना तो उसी दिन तय था जिस दिन वह पंजाब जेल से आया था । इस बात की दलीलें बहुत दी जा रही है कि उसने बहुतों को मौत के घाट उतारा, बात सही है लेकिन फिर बृजेश सिंह का नाम दो दिन पहले यूपी सरकार द्बारा जारी की गयी टॉप 26 अपराधियों की सूची में क्यों नहीं है ? अगर अपराधियों को इसी तरह से खात्मा करना है तो अच्छा है, न्यायालय, जेल, जज, वकील, पुलिस सबका समय बच रहा है और तमाशबीन जनता भी ताली बजा रही है। तो फिर ऐसा करने में दिक्कत ही क्या है ? पता नहीं क्यों लोग संविधान-संविधान चिल्लाते हैं। जनता को मालुम होना चाहिए कि संविधान वह है जो सरकार के लिए सहूलियत प्रदान करे। अभी देखिये कर्नाटक में खनन माफिया जगन रेड्डी भाजपा में आ गये, अरे अब वो माफिया थोडी हैं। हिमंत बिस्वा सरमा गुवाहाटी में जलापूर्ति घोटाले में आरोपी थे, अब थोड़ी हैं। नारायण राणे: पर भ्रष्टाचार के आरोप थे, अब नहीं हैं । अजित पवार पर 70,000 करोड़ के घोटाले का आरोप था, अब नहीं है। हसन मुश्रीफ पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप था, अब वह पाक हैं। छगन भुजबल पर ईडी ने मामला दर्ज किया था, अब नहीं है। अशोक चव्हाण भी इसी श्रेणी में खड़ें हैं। उसी तरह बृजेश सिंह अपराधी नहीं है।

कहते हैं कि जिस उसरचट्टी मामले में तीन अप्रैल को सुनवायी होनी थी उसमें बृजेश सिंह पर सजा होनी तय थी, तो मुख्तार को तो जाना ही था दो दिन पहले ही सही। अब साहब हार्ट अटैक है तो वह किसी को बताकर थोड़ी आता है। सरकार जांच कर रही है। डाक्टरों के पैनल ने रिपोर्ट दी है कि हार्ट अटैक हुआ है। सीजेएम के नेतृत्व में टीम जांच कर रही है, चिंता मत करिये आप पक्का मानिये रिपोर्ट यही आयेगी, सरकार क्यों झूठ बोलेगी। सरकार क्यों मरवायेगी। पता नहीं क्यों पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह भी कह रहे हैं कि मुख्तार मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। उन्हें जेल में  जहर दिया जा सकता है, संभव है। मुझे लगता है कि पूर्व डीजीपी भी विपक्ष की भाषा बोल रहे हैं। सभी को सरकार पर भरोसा रखना चाहिए। सरकार सबका साथ सबका विकास पर अमल कर रही है। मुख्तार कोई राबिनहुड नहीं था। माफिया था, उसको सजा कोर्ट से मिली ही थी।

NCRB  की वर्ष 2022 की रिपोर्ट को मानें तो देश भर की जेलों में हुई बंदियों की मौत के मामले में यूपी पहले स्थान पर था। वर्ष 2022 में यूपी की जेलों में कुल 375 बंदियों की मृत्यु हुई थी। इनमें से 351 मौतों की वजह सामान्य जबकि 24 मौतें असामान्य थी। इनमें से 295 बंदियों की मृत्यु बीमारी और 54 की अधिक उम्र होने की वजह से हुई थी। अगर बंदियों की बीमारी पर नजर डालें तो 68 की मृत्यु दिल की बीमारी, 53 की फ़ेफड़ा खराब होने, 12 की लीवर व छह की किडनी खराब होने, 23 कैंसर, 12 टीबी, पांच ब्रेन हेमरेज और एक की एचआईवी की वजह से हुई। वहीं असामान्य मौतों की बात करें तो वर्ष 2022 में 12 बंदियों की मृत्यु आत्महत्या करने, एक की मौत बाहरी लोगों के हमले, पांच की दुर्घटना और आठ की अन्य कारणों से हुई थी।

गौरतलब है कि देश भर की जेलों में असामान्य वजहों से होने वाली मौतों के मामले में भी यूपी पहले स्थान पर है। प्रदेश की जेलों में बंदियों की होने वाली मौत की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। कारागार विभाग के मुताबिक वर्ष 2019 में जेलों में 427 बंदियों की मृत्यु हुई थी, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 436 हो गई। इसी तरह वर्ष 2०21 में 478 बंदियों की और वर्ष 2022 में 501 बंदियों की मृत्यु हुई थी। हालांकि कारागार विभाग और NCRB के आंकड़ों में थोड़ा फर्क भी है। NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में यूपी की जेलों में 434 बंदियों की मृत्यु हुई थी। जबकि वर्ष 2021 में 481 और वर्ष 2022 में 375 बंदियों की मौत हुई थी। लेकिन यह डाटा NCRB का है कोई जरूरी नहीं कि आप यकीन करें, आप खुद समझदार हैं लेकिन मैं इतना कह रहा हूं कि देश बिल्कुल सही राह पर चल रहा है। देश की जनता को यही पसंद आ रहा है।

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