हेमंत कश्यप/जगदलपुर
बस्तर का पुराना नाम दंडकारण्य है और किसी जमाने में यहां एक दो नहीं पूरे नौ महान ऋषि आश्रम बना कर देवी आराधना करते थे। उनके आश्रम आज भी मौजूद है किंतु जानकारी के अभाव में जन सामान्य इन ऋषियों की तपोस्थली नहीं देख पा रहे हैं। दंडकारण्य क्षेत्र पहले काफी बड़ा था, किंतु अब यह क्षेत्र बस्तर अर्थात दंडकारण्य का पठार के नाम से सीमित हो गया है।
यहां के पहले ऋषि लोमस का आश्रम महानदी और सोंडुर नदी के संगम पर राजिम में स्थित है। इसी तरह दंडकारण्य का अंतिम ऋषि आश्रम इंजरम सुकमा में है।यह हजारों साल पहले इंज ऋषि का आश्रम हुआ करता था। वहां उस काल की पुरानी मूर्तियों आज भी बिखरी पड़ी हैं। इसी तरह नगरी, सिहावा और कांकेर क्षेत्र में श्रृंगी ऋषि, शरभंग ऋषि, कर्क ऋषि, कुंभज ऋषि, अंगिरा ऋषि, मुचकुंद ऋषि और अगस्त ऋषि का आश्रम आज भी मौजूद है। सिहावा आने वाले श्रद्धालु श्रृंगी ऋषि का आश्रम तो देख पाते हैं किंतु जानकारी के अभाव में अन्य ऋषियों के आश्रम का दर्शन नहीं कर पाते।
राम वन गमन पथ पड़ाव
बस्तर से संदर्भित इतिहास बताते हैं कि महानदी के किनारे यह नौ ऋषि देवी आराधना करते थे। यह भी बताया गया कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान इन ऋषियों से आशीर्वाद लेते हुए पंचवटी की तरफ गए थे। इन आश्रमों को राम वन गमन पथ का प्रमुख पड़ाव भी माना जाता है। लंबे समय से सिहावा क्षेत्र के सप्त ऋषियों और राजिम के लोमश तथा सुकमा जिले के इंजरम स्थित इंज ऋषि के आश्रमों को संरक्षित करने की मांग उठती रही है किंतु इन पौराणिक धरोहरों को सहेजने का प्रयास नहीं किया गया।