कमलेश कमल
व्याकरणिक दृष्टि से देखें, तो ‘हनुमत्’ से ‘हनुमान्’ शब्द की निर्मिति है। जैसे ‘धीमत्’ से ‘धीमान्'(बुद्धिमान्), ‘विद्वत्’ से ‘विद्वान्’; उसी तरह ‘हनुमत्’ से ‘हनुमान्’। अब इस ‘हनुमान्’ शब्द को देखें, तो ‘हनु’ और ‘मान्’ दो शब्द मिलते हैं। चूँकि कोई दो वर्ण नहीं मिल रहे हैं और न ही कोई विकार उत्पन्न हो रहा है, इसलिए ‘हनुमान्’ में कोई संधि नहीं है। हाँ, दो शब्द मिल रहे हैं, अतः यहाँ समास हो सकता है। आइए, देखते हैं– ‘हनु’ शब्द के दो अर्थ हैं:
1.हनन करना
2.जबड़ा अथवा ठुड्डी
इस तरह ‘हनुमान्’ शब्द के भी दो अर्थ हुएः
1.जिसने हनन कर लिया अपने मान अथवा घमंड का = ‘बहुव्रीहि-समास’।
2.’हनु’ अर्थात् जबड़ा है जिसका मान = ‘कर्मधारय-समास’।
समास-विग्रह का नियम है कि जहाँ बहुव्रीहि और कर्मधारय दोनों समास हों, वहाँ ‘बहुव्रीहि’ को वरीयता दी जाती है। वैसे भी, पहला अधिक तर्कसंगत है। ऐसे भी अतुलित बल के धाम (निवास स्थान), ज्ञानियों के नामों में सबसे आगे गिने जाने वाले और सकल (सभी) गुणों के निधान (अमानत, treasury, treasure trove), वानरों के प्रमुख, पवनपुत्र ‘हनुमान्’ के लिए बहुव्रीहि समास ही समीचीन है।
‘बजरंगबली’ विशेषण भी रोचक है। यह ‘बजरंग’ और ‘बली’ से बना दिखता है, पर ‘बजरंग’ मूलतः ‘वज्रांग’ है। मान्यता है कि ‘अंजनिपुत्र’ को ऋषि-मुनियों का आशीष मिला और उनका शरीर वज्र की भाँति कठोर हो गया। वज्र-सदृश शक्तिशाली अंग होने से वे ‘वज्रांग’ हुए और ‘बली’ अथवा शक्तिशाली होने के कारण ‘वज्रांगबली’ हो गए। लोक की भाषा में, यह ‘वज्रांगबली’ ही ‘बजरंगबली’ के रूप में लोकप्रिय हो गया।
विशेष: ‘मरुत’ के समान वेगवान् अथवा वायु देवता के पुत्र होने के कारण वे ‘मारुति’, पवनसुत, मरुतसुत आदि कहलाए।