स्वास्थ ही जीवन है”। यह एक पुरानी कहावत है। इसका आशय शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से है इसमें भी व्यक्ति के जीवन की सफलता और शारिरिक स्वास्थ्य की कुंजी मानसिक स्वास्थ्य ही है।इसके बिना व्यक्ति की शिक्षार्जन,आजीविका दांपत्य जीवन आदि संपूर्ण भाग्य की सफलता संदिग्ध ही रहती है एवम,इसकी चिकित्सा भी अत्यंत कठिन है। व्यक्ति का जीवन जैसे जैसे जटिल समस्याओं से आक्रांत होता है वैसे वैसे उसके मानसिक तनाव में वृद्धि होती है इसकी वजह से मानसिक अवसाद और हृदय रोग की संभावना भी बन सकती है,अतः इसका ज्योतिषीय विश्लेषण एवम निवारण आवश्यक है।
मानसिक विकृति या रोग वृद्धि में चंद्र तथा बुध की प्रमुख भूमिका रहती है,क्योंकि चन्द्र मस्तिष्क एवम बुध मस्तिष्क के स्नायु तन्त्र का कारक है।इसके अतिरिक्त सिर का कारक लग्न,मानसिक स्थिरता का कारक तृतीय और नवम,मानसिक स्वास्थ्य का कारक चतुर्थ,बुद्धि का कारक पंचम भाव है।अतः चंद्र बुध के साथ साथ लग्न,तृतीय,चतुर्थ,पंचम ,नवम भाव का प्रबल होना मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।यदि ये सब पापक्रांत और निर्बल हो तो मानसिक विकृति पैदा हो सकती है जैसे,दिन में जन्म होने पर शनि के प्रभाव से मिर्गी एवम रात्रि में जन्म होने पर उन्माद पैदा हो सकती है। इसके उल्टा मंगल के प्रभाव से दिन में जन्म होनेपर उन्माद और रात्रि में जन्म होने पर मिर्गी हो सकता है,इसके अलावा षष्ठ अष्टम द्वादश भाव में स्थित बुध पाप प्रभाव में आकर वाणी दोष या कंठ रोग हो सकता है।
अतः जन्म कुंडली में स्थित उपरोक्त दोसों के आधार पर रत्नादि एवम देवोपासना के द्वारा इसके निवारण हेतु सहज उपाय बताकर जीवन को सफल बनाया जा सकता सकता है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र-9415087711