- अब खुद की जांच कर खुद को दोषी ठहराएंगे प्रभारी डीआईजी!
- प्रमुख सचिव/डीजी जेल ने अस्त व्यस्त की कारागार की व्यवस्था
- कारागार विभाग में अफसरों को प्रभार दिए जाने पर उठने लगे सवाल
राकेश यादव
लखनऊ। प्रमुख सचिव/महानिदेशक कारागार ने ही प्रदेश कारागार विभाग की व्यवस्थाओं को ही अस्त व्यस्त कर दिया है। यह बात पढ़ने और सुनने में भले ही अटपटी लगे लेकिन शासन में बैठे आला अफसरों ने इसको सच साबित कर दिया। अफसरों की कार्यप्रणाली का यह आलम है कि दोषी पाए जाने वाले अधिकारी को ही दंड देने का प्रभारी बना दिया। दिलचस्प बात यह है कि अब दोषी अधिकारी ही अपनी जेल में हुई घटना की जांच करेगा। जांच में दोषी पाए जाने पर वह खुद ही अपने आप को दंडित करेगा। यह सवाल विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास भी लगाए जा रहे है। उधर विभाग के आला अफसर इस गंभीर मसले पर कुछ भी बोलने से बच रहे है।
बीती 31 मार्च को डीआईजी कारागार मुख्यालय अरविंद कुमार सिंह रिटायर हुए। इनके रिटायरमेंट के बाद कुछ अधिकारियों को कार्यभार का आवंटन किया गया। इस कार्य आवंटन में एक रोचक मामला प्रकाश में आया। इस कार्य आवंटन में लखनऊ जेल पर तैनात वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड वन आशीष तिवारी को उसी (लखनऊ परिक्षेत्र) परिक्षेत्र का प्रभारी डीआईजी बना दिया गया जिसमे वह तैनात है। अब वह अपनी जेल में ही घटना की खुद ही जांच करेंगे और खुद ही दंडित भी करेंगे। ऐसे में घटना की निष्पक्ष जांच हो पाना कैसे संभव हो पाएगा। यह सवाल विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
सूत्रो का कहना है कि पिछले करीब चार साल से अधिक समय से लखनऊ जेल में आशीष तिवारी तैनात है। अधीक्षक के तौर पर कानपुर से वरिष्ठ अधीक्षक की जेल पर तैनात हुए आशीष तिवारी को करीब ढाई साल पहले ही वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड वन पर प्रोन्नत किया गया। प्रोन्नत के बाद शासन ने इनका तबादला करने के बजाए यहीं पर बनाए रखा। चार साल की तैनाती के दौरान जेल में घटनाओं की भरमार रही। जेल के गल्ला गोदाम से 35 लाख रुपए की नगद बरामदगी, जेल में बंद सपा सरकार के पूर्व गायत्री प्रजापति का मोबाइल फोन से वाराणसी के एक व्यवसाई को धमकी देने, जेल में बांग्लादेशी बंदियों को ढाका से फंडिंग, जेल से सनसाइन सिटी मामले में पावर ऑफ अटॉर्नी, जेल में बंदीरक्षक की मौत और जेल में आए बंदियों की मौत के मामलों को लेकर जेल सुर्खियों में रही।
सूत्र बताते है कि इनमे कई मामलों की जांच लखनऊ परिक्षेत्र के तत्कालीन डीआईजी जेल से कराई गई। जेल से फोन पर धमकी देने, सन साइन पावर ऑफ अटॉर्नी, बांग्लादेशी बंदियों की फंडिंग और अन्य कई मामलों में उन्हें दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ वृहद दंड दिए जाने की संस्तुति तक की गई। किंतु शासन में सेटिंग होने की वजह से आज तक इनके खिलाफ कोई कार्यवाही तक नहीं की गई। शासन ने कई जांचों में दोषी पाए गए इस अधीक्षक के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाए मौका पाते ही वरिष्ठ अधिकारियों को नजरंदाज कर उन्हें लखनऊ जेल परिक्षेत्र का प्रभारी डीआईजी बना दिया। उधर इस संबंध में जब प्रमुख सचिव/महानिदेशक कारागार राजेश कुमार सिंह से बात करने का प्रयास किया गया तो उनके निजी सचिव विनय सिंह ने व्यस्तता बताते हुए बात कराने से ही इनकार कर दिया। डीजी पुलिस/आईजी जेल पीवी रामशास्त्री के पीआरओ अंकित ने फोन ही नहीं उठाया।
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सीनियर को दरकिनार कर जूनियर को बना दिया प्रभारी डीआईजी
शासन में कारागार विभाग में जूनियर को सीनियर और सीनियर को जूनिय नर ही नहीं बनाया उसने परिक्षेत्र की जेल में तैनात अधीक्षकों को ही उन्ही परिक्षेत्र में बतौर प्रभारी डीआईजी तक बना दिया। राजधानी की जिला जेल में तैनात वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड वन आशीष तिवारी को लखनऊ परिक्षेत्र का प्रभारी डीआईजी बनाया। इससे पहले केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में तैनात वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड टू प्रेमनाथ पांडे को कानपुर परिक्षेत्र का प्रभारी डीआईजी बनाया गया। वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड वन आशीष तिवारी को प्रभारी डीआईजी तब बनाया गया जब विभाग के सबसे वरिष्ठ डीआईजी शैलेंद्र मैत्रेय मुख्यालय के बगल जेल प्रशिक्षण संस्थान में नोडल अफसर बने है। इसके अलावा डीआईजी पद पर प्रोन्नति के प्रबल दावेदार वरिष्ठ अधीक्षक ग्रेड टू रामधनी इटावा और राधाकृष्ण मिश्रा केंद्रीय कारागार वाराणसी में तैनात है। इन तीन वरिष्ठ अधिकारियों को दर किनार करके एक जूनियर अधीक्षक को प्रभारी डीआईजी बना दिया गया।