- प्रदोष व्रत के दिन की जाती है भगवान शिव की पूजा।
- प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है प्रदोष व्रत
- जानिए, प्रदोष व्रत पर किन चीजों के दान से मिलता है लाभ
राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है। इस दिन साधक महादेव की कृपा प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं और विधि–विधान के साथ महादेव की पूजा–अर्चना करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि प्रदोष व्रत में किन चीजों का दान करने से साधक को महादेव की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है।
पंचांग के अनुसार जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल के काल में लगती है तो उस दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखा जाता है। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत किया जाता है, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 जुलाई को प्रात: 7 बजकर 10 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 4 जुलाई प्रात: 5 बजकर 54 मिनट पर होगा। इस दिन प्रदोष काल में पूजा लाभकारी मानी जाती है। इस वजह से इस बार यह व्रत 3 जुलाई के दिन बुधवार को रखा जाएगा।
करें इन चीजों का दान
अन्न दान को हिंदू धर्म में सबसे उत्तम दान माना गया है। ऐसे में आप प्रदोष व्रत के दिन किसी जरूरतमंद को अन्न का दान कर सकते हैं। इससे साधक पर महादेव की कृपा बरसती है और घर–परिवार में सुख–समृद्धि बनी रहती है।
दान करें इस तरह के वस्त्र
प्रदोष व्रत के दिन सफेद रंग के वस्त्रों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के मान–सम्मान में वृद्धि होती है। साथ ही साधक को करियर में सफलता प्राप्त होती है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि पुराने वस्त्रों का दान नहीं करना चाहिए।
बरसेगी महादेव की कृपा
प्रदोष व्रत के दिन उड़द दाल का दान करना बहुत ही लाभकारी माना गया है। ऐसा करने से व्यापार–व्यवसाय में लाभ के योग बनते हैं। वहीं, सोमवार और प्रदोष व्रत के दिन सफेद चीजें जैसे चीनी, चावल और दूध का दान करना अच्छा माना जाता है। इससे जातक की कुंडली में चन्द्रमा मजबूत होता है।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय में किसी नगर में तीन मित्र निवास करते थे। उनमें एक राजकुमार, एक ब्राह्मण कुमार और एक घनिक पुत्र था। तीनों मित्रों का विवाह हो चुका था। घनिक पुत्र का गौना नहीं हुआ था। एक दिन तीनों मित्र अपनी अपनी पत्नी की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने कहा जिस घर में स्त्री नहीं होती है वहां भूतों का वास होता है। यह सुनकर घनिक पुत्र अपनी पत्नी को तुरंत घर लाने का निश्चय करता है। वह अपनी पत्नी को लाने सुसराल पहुंच गया। लेकिन, शुक्र के अस्त चलने के कारण पत्नी के माता–पिता पुत्री को विदा नहीं करना चाहते थे, धनिक पुत्र उनकी बात नहीं माना और जबरन अपनी पत्नी को साथ ले गया।
रास्ते में बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और दोनों घायल हो गए। कुछ दूर बाद उनका सामना डाकुओं से हो गया। डाकुओं ने दोनों को लूट लिया। किसी तरह दोनों घर पहुंचे। घर पहुंचते ही धनिक पुत्र को सांप ने काट लिया। वैद्य ने कहा मृत्यु निश्चित है। यह समाचार जान कर दोनों मित्र वहां पहुंचे और धनिक पुत्र के माता–पिता से शुक्र प्रदोष का व्रत रखने को कहा। उन्होंने बहु और बेटे को साथ उसके माता–पिता के पास भेजने के लिए कहा क्योंकि शुक्र के अस्त होने पर बेटी को विदा नहीं करना चाहिए। धनिक ने ऐसा ही किया। पत्नी के माता–पिता के घर पहुंचते ही धनिक पुत्र ठीक हो गया। इस चलते मान्यता के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत करने से घोर कष्ट भी दूर हो सकते हैं।