- गुरु पूर्णिमा कथा, जानिए कौन थे महर्षि वेदव्यास
- आज पूजा-पाठ और दान का है विशेष महत्व. जानें कथा
राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद शुभ माना जाता है। यह हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस तिथि पर महाभारत के रचयिता महान ऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, जिसके चलते इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर पूजा-पाठ और दान-पुण्य का खास महत्व है।
21 जुलाई को मनाई जाएगी गुरु पूर्णिमा?
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई दिन शनिवार को शाम 05 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि की समाप्ति अगले दिन 21 जुलाई, 2024 दिन रविवार को दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर होगी। उदयातिथि को देखते हुए गुरु पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा शुभ योग
गुरु पूर्णिमा पर कई शुभ योग का महासंयोग बन रहा है। दरअसल, इस तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा। वहीं, इसका समापन मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट पर होगा। इसके साथ ही उत्तराषाढ नक्षत्र भोर से लेकर मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। साथ ही श्रवण नक्षत्र और प्रीति योग का भी निर्माण होगा। इसके अलावा विष्कंभ योग प्रात: से लेकर रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
गुरु पूर्णिमा कथा
गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। कहते हैं ये वही दिन है जिस दिन हिंदुओं के पहले गुरु वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी। उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की जिसके लिए उन्होंने वन में जाकर तपस्या करने की मांग की। लेकिन उनकी माता ने इस इच्छा को नहीं माना।
महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को मनवा लिया। लेकिन उनकी माता ने आज्ञा देते हुए कहा की जब भी घर का ध्यान आए तो वापस लौट आना। इसके बाद वेदव्यास जी तपस्या हेतु वन में चले गए और वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की।
इस तपस्या के पुण्य से उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। इसके बाद वेदव्यास जी ने चारों वेदों का विस्तार किया। साथ ही महाभारत, अठारह महापुराणों और ब्रह्मास्त्र की रचना की। इसी के साथ उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। ऐसी मान्यता है कि किसी न किसी रूप में महर्षि वेदव्यास आज भी हमारे बीच में उपस्थित हैं। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास जी को भगवान के रूप में पूजा जाता है और गुरु पूर्णिमा पर इनकी विधि विधान पूजा की जाती है।