- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन प्लान 2047 को साकार करने का किया आह्वान
- सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, चिन्तक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति है प्रो. तिवारी
आजमगढ़। महाराजा सुहेल देव राज्य विश्वविद्यालय का प्रथम दीक्षांत समारोह आजमगढ़ के इतिहास का सुनहरा अवसर है। इसकी शोभा प्रदेश की राज्यपाल व कुलाधिपति श्रीमती आनंदी बेन पटेल ने जहाँ बढ़ाई। वहीँ मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी की गरिमामय उपस्थिति रही। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के मेधावान छात्र छात्राओं को विभिन्न पदक प्राप्त हुए। कुलाधिपति ने अपनी गरिमामय उपस्थिति में पदक व डिग्रीधारकों को सम्मानित किया व उनको अपनी शुभकामनाएं प्रदान किया।
इस अवसर पर देश के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, चिन्तक एवं विचारक मुख्य अतिथि प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी ने अपने भाषण में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार शर्मा, विश्ववद्यालय परिवार एवं पदक-प्राप्तकर्ताओं को अपनी शुभकामनाएं दी और कहा मानव जीवन का महत्व इस बात में निहित है कि वह संसार को पहले से अधिक प्रकाशमान तथा जागरूक बनाए। शिक्षा तभी सार्थक होती है जब हम मानवता के कल्याण हेतु अपनी सृजनात्मक भूमिकाओं को पहचान सकें। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु केवल ज्ञान का होना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका श्रेष्ठ आचरण के साथ समन्वय भी आवश्यक है।
प्रो. तिवारी देश में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं और उन्होंने यूजीसी जैसे महत्वपूर्ण निकायों में अपना अवदान दिया है। वह खुद विश्वविद्यालयी कार्य-संस्कृति के वाहक बनकर दैदीप्यमान हैं। इसीलिए विश्वविद्यालय की आत्मा की आवाज़ की तरह अपने उत्कृष्ट अभिभाषण में यह भी प्रो. तिवारी ने कहा कि हमारे भारतीय चिंतन परम्परा में शिक्षा का अर्थ है ‘सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात् वास्तविक ज्ञान मनुष्य को जीवन की तमाम संकीर्णताओं से मुक्त करता है। दीक्षांत समारोह के पश्चात छात्रों से अपेक्षा की जाती है कि वे ज्ञान-विज्ञान के विमर्श को समृद्ध करने तथा समाज को पहले से अधिक सृजनात्मक एवं सशक्त बनाने हेतु नवीन मार्गों का अंवेषण करें।
प्रो. तिवारी ने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर और अब पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा का सतत नेतृत्व कर रहे हैं जिन्हें महाराजा सुहेल देव राज्य विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह आजमगढ़ व कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। सहज व् विनम्र स्वभाव के धनी प्रो. राघवेंद्र प्रसाद तिवारी ने अपनी विनम्र व पांडित्यपूर्ण अभिभाषण से सबका दिल जीत लिया क्योंकि उनके अभिभाषण में सामान्य बातें नहीं रहीं बल्कि वह भारत की ज्ञान परंपरा वेद, उपनिषद् और सनातन संस्कृति का जैसे आख्यान प्रस्तुत कर रहे थे, ऐसा सभी ने महसूस किया। प्रो. तिवारी ने कहा शिक्षा के छह स्तर, जो ब्लूम की टैक्सोनॉमी में याद रखना, समझना, लागू करना, विश्लेषण करना, मूल्यांकन करना और सृजन करना वर्णित हैं, गुरुकुलों की छह चरणों की शिक्षा पद्धति के समान ही हैं।
गुरुकुलों में छ: श्रेणियों के शिक्षक होते थे यथा अध्यापक, उपाध्याय, आचार्य, पंडित, दृष्टा और अंत में गुरु जो बुद्धि को जागृत करने वाले अर्थात जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते थे। अतएव हमारी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली सदैव प्रासंगिक रहेगी। उन्होंने कहा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में वे सभी सुधार निहित हैं जो 21वीं सदी के विद्यार्थियों की सीखने की जरूरतों को पूर्ण करने एवं उन्हें वैश्विक नागरिक बनाने हेतु आवश्यक हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को इसकी संपूर्णता में लागू करके ही हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शुभेच्छा यथा आत्मनिर्भर भारत एवं विकसित भारत साल 2047 की प्राप्ति कर सकते है।
उन्होंने विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय को आह्वान किया कि मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि कर्ता ही इतिहास का निर्माता होता है। इसलिए प्रिय स्नातकों आज यह संकल्प लीजिए कि आप केवल ‘विचारक’ ही नहीं बल्कि ‘कर्मयोगी’ भी बनेंगे और भारत के सर्वांगीण विकास हेतु अपना योगदान देंगे। आप सभी भाग्यशाली हैं कि भारतवर्ष के अमृतकाल में विद्यार्जन कर रहे है। इस अवसर का आप भरपूर उपयोग राष्ट्रहित में करें।