चंदौसी/संभल । पश्चिमी उत्तर प्रदेश का संभल जिला आजकल लाइमलाइट में हैं। देश-विदेश सभी जगह संभल की चर्चा चल रही है। ऐसा लग रहा है कि पूरा संभल ही ऐतिहासिक धरोहर पर बैठा हो और जिसे मुगल काल में बेरहमी से ‘कुचला’ गया हो। दरअसल, आज का मुस्लिम बाहुल्य संभल हमेशा ऐसा नहीं था। पिछले कुछ दशकों में यहां हिन्दुओं की जनसख्या काफी तेजी से कम हुई है। इसके पीछे की मुख्य वजह यहां दंगों का इतिहास रहा है, जिसमें सैकड़ों हिन्दुओं को समय-समय पर जान से हाथ धोना पड़ चुका था,लेकिन किसी सरकार ने इसकी सुध नहीं ली, परिणाम स्वरूप यहां से बड़ी संख्या में भयभीत हिन्दुओं ने पलायन कर लिया। फिर भी संभल हिन्दुओं के लिये हमेशा से धार्मिक महत्व रखता है। यह विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार कल्कि का कथित जन्म स्थान है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार,कल्कि कलयुग (अंधकार का युग) को समाप्त करने के लिए संभल में प्रकट होने वाले हैं। वर्ष 2024 की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां भव्य कल्कि धाम का शिलान्यास और ‘राम राष्ट्र’ का आह्वान किया था। दावा यह किया गया था कि कल्कि का अवतार हजारों वर्षों के भविष्य का निर्धारण करेगा।
खैर, साल के शुरू में भगवान विष्णु के आखिरी अवतार कल्कि महाराज के संभल में प्रकट होने की बात कही जा रही थी तो साल का अंत आते-आते कुछ हिन्दू पक्षकारों द्वारा दावा किया जाने लगा कि संभल की जामा मस्जिद भगवान कल्कि को समर्पित एक मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई थी। मामला स्थानीय अदालत में पहुंचा और याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया गया है कि 1526-27 में बाबर के आक्रमण के दौरान मंदिर को नष्ट करने के बाद मस्जिद का निर्माण किया गया था। सबूत के तौर पर कहा गया कि बाबरनामा और अकबरनामा जैसे ऐतिहासिक ग्रंथ बाबर की ओर से मंदिर के विनाश का दस्तावेजीकरण करते हैं। कोर्ट ने इस पर सर्वे का आदेश दे दिया,जिसकी परिणीति 24 नवंबर 2024 को संभल में हुये दंगे के रूप में हुई। क्योंकि जामा मस्जिद के पैरोकार यह बात मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी मस्जिद किसी मंदिर के ऊपर बनाई गई है। इसी लिये सर्वे टीम जब 24 तारीख को सर्वे करने के लिये जामा मस्जिद पहुंचे तो शहर में पुलिस और मुस्लिम आमने-सामने आ गये जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई। इसके बाद किसी तरह से मामला शांत किया गया।
जामा मस्जिद बनाम कल्कि मंदिर का विवाद थमा भी नहीं था कि कुछ दिनों बाद यहां अतिक्रमण हटाये जाने के दौरान मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में प्राचीन मंदिर मिलने के बाद एक बार फिर संभल देशभर में सुर्खियाों में आ गया। दरअसल, जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद प्रशासन की टीम इलाके में बिजली और अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रही थी। इसी अभियान के दौरान 14 दिसंबर को खग्गू सराय इलाके में प्रशासन को एक प्राचीन मंदिर मिला, जो करीब 50 सालों से बंद पड़ा था। यह कार्तिकेश्वर महादेव का मंदिर था। मंदिर में शिवलिंग के अलावा हनुमान की मूर्ति थी। इसी मंदिर से तकरीबन 200 मीटर दूर सपा के सांसद जिया उर रहमान बर्क का घर है। बाद में कार्तिकेश्वर महादेव मंदिर के पास कुआं मिला। कुएं की खुदाई में कुछ देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली। इसी मंदिर से 50 मीटर पर दूरी पर दूसरा कुआं मिला, जो मस्जिद के सामने मौजूद था। इसके बाद 17 दिसंबर को संभल के सरायतरीन इलाके में राधा कृष्ण मंदिर मिला। मंदिर के प्रांगण में ही कुआं निकला। मंदिर के अंदर राधा कृष्ण के अलावा हनुमान की मूर्ति थी। बाद में इसकी साफ सफाई कराई गई। फिर 21 दिसंबर को संभल के चंदौसी तहसील इलाके के लक्ष्मण गंज में खंडहरनुमा प्राचीन बांके बिहारी मंदिर मिला। कहा जा रहा है कि 25 साल पहले इस इलाके में हिंदू बड़ी तादाद में रहा करते थे, लेकिन कुछ समय बाद यहां मुसलमानों की संख्या बढ़ी और हिंदुओं की आबादी कम होने के चलते धीरे-धीरे उनके यहां से पलायन शुरू हो गया। ये भी बताया जा रहा है कि इस मंदिर में 2010 तक पूजा अर्चना होती थी, लेकिन 2010 में कथित रूप से शरारती तत्वों ने मंदिर में विराजमान भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा और शिवलिंग समेत अन्य मूर्ति को खंडित कर दिया था।
संभल के इतिहास में 22 दिसंबर फिर खास बनकर आया क्योंकि अबकि से संभल की तहसील चंदौसी के लक्ष्मण गंज में एक पुरानी बावड़ी मिली थी। बताया जाता है कि ये बावड़ी तकरीबन 150 साल पुरानी है। इसका दायरा करीब 400 वर्ग मीट है। बांके बिहारी मंदिर से तकरीबन 150 मीटर दूर यह बावड़ी मिली है। स्थानीय लोगों का दावा है कि ये 1857 की बावड़ी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि हिंदुओं का पलायन होने के बाद से उस जगह को माफियाओं ने कब्जा लिया था। इतिहास यहीं तक नहीं था। 26 दिसंबर को संभल के खग्गू सराय इलाके में शाही जामा मस्जिद से तकरीबन 200 मीटर दूर एक मृत्यु कूप मिला है। संभल नगर निगम के वार्ड मेंबर के मुताबिक, ये कूप संभल के 19 कूपों में से एक है। ये कूप पिछले कई सालों से बंद हो गया। आसपास के जो घर बने हैं, उसका मालवा यहां डाल दिया गया था। अब नगर निगम इस कूप की खुदाई करवा रहा है, ताकि इस प्राचीन कूप को एक बार फिर से जीवंत किया जा सके।
चंदौसी में बावड़ी मिलने के बाद चंदौसी से कुछ किलोमीटर दूर बिलारी के राजा और पूर्व सांसद राजा चंद्र विजय सिंह ने सहसपुर स्थित अपने महल में प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि लोग कह रहे थे कि चंदौसी में एक बावड़ी मिली है। बावड़ी तीन मंजिल की है, जो अनोखी चीज है। उत्तरी भारत में बहुत कम बावड़ी हैं। बावड़ी का ज्यादा रिवाज राजस्थान और गुजरात आदि में होता है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस बावड़ी को अपनी बता रहे हैं। जो लोग ये कह रहे हैं उनसे वह परिचित नहीं हैं। जबकि सच्चाई ये है कि हमारे परिवार की बनाई हुई है। हमारे परिवार की मिल्कियत है। परिवार में दो लोग हैं। एक मैं और मेरी छोटी बहन। ये बात स्पष्ट करनी थी। राजा चंद्र विजय सिंह ने कहा कि हम ये चाहते हैं कि पुरातत्व विभाग इसे अपनी सुपुर्दगी में ले और उसका जीर्णोद्धार करे, ताकि यह चंदौसी वासियों के लिए एक अच्छा पर्यटन स्थल बने। बेबी राजा ने बताया कि बावड़ी के बारे में उन्होंने सुना था लेकिन ये नहीं मालूम था कि यहां दबी है। वहां जो कृष्ण निवास करके कोठी थी। वह हमारे बुजुर्ग राजा कृष्ण कुमार सिंह साहब ने बनवाई थी। वहां एक पत्थर भी लगा है। जिस पर कृष्ण निवास लिखा है। उसी कोठी परिसर में ये बावड़ी बनी है। प्रशासन पुराने रिकॉर्ड खंगाले तो सच सामने आ जाएगा।