- प्रदेश विभाजन के उपरांत देहरादून से हो गया गोरखपुर
- वर्ष-2000 में राज्य विभाजन के उपरांत उत्तराखंड राज्य के किसी निवासी का नहीं बदला जा सकता गृह जनपद
- बांदा से छह माह बाद मुरादाबाद पहुंचे अधीक्षक का कारनामा
लखनऊ। प्रदेश कारागार विभाग के अधिकारियों के अजब गजब कारनामे प्रकाश में आ रहे हैं। विभाग के एक अधीक्षक ने यूपी में बरकरार रहने और जेलों से मोटी कमाई करने के लिए अपना ग्रह जनपद ही बदलवा दिया। इस सच का खुलासा विभाग की वरिष्ठ सूची से हुआ है। 1996 की वरिष्ठता सूची में इसका ग्रह जनपद देहरादून दिखाया तो 2009 की वरिष्ठता सूची में इसी अधिकारी का ग्रह जनपद गोरखपुर हो गया। यह मामला विभागीय अधिकारियों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी सामने आ जाएगा।
बीते स्थानांतरण सत्र में करीब साढ़े तीन साल से गाजियाबाद जेल पर तैनात अधीक्षक आलोक सिंह का तबादला बांदा जेल पर किया गया था। बांदा जेल में तैनाती के दौरान उनका अधिकांश समय अवकाश में बीता था। तैनाती के छह माह बाद ही बांदा जेल अधीक्षक को 25 दिसंबर 2024 को बांदा से मुरादाबाद जेल पर तैनात कर दिया गया। इससे पूर्व में वह करीब साढ़े तीन साल तक अलीगढ़ और इतने ही समय तक गाजियाबाद जेल पर तैनात रहे। इनका अधिकांश कार्यकाल पश्चिम की कमाऊ जेलों पर रहा।विभाग में आलोक सिंह के गृह जनपद को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
सूत्रों का कहना है आलोक सिंह मूलतः उत्तराखंड के देहरादून का रहने वाला है। आलोक सिंह की वर्ष-1991 में डिप्टी जेलर पर नियुक्ति हुई थी। विभाग की ओर से वर्ष-1996 में जारी की गई वरिष्ठता सूची में आलोक सिंह का गृह जनपद देहरादून दिखाया गया है। वही वर्ष-2009 की वरिष्ठता सूची में गृह जनपद गोरखपुर दिखाया गया है। बताया गया है कि जब उत्तर प्रदेश का विभाजन होकर वर्ष- 2000 में उत्तराखंड बना तो यह उत्तराखंड जा रहा था। उत्तराखंड जाने से बचने के लिए अपना गृह जनपद गोरखपुर करा लिया। परीक्षा फार्म में गृह जनपद तय होने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता है। इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए तो सच सामने आ जाएगा।
पश्चिम की जेलों में बिताया अधिकांश समय
देहरादून से गोरखपुर गृह जनपद बदलवाने वाले जेल अधीक्षक ने अपना अधिकांश समय प्रदेश की पश्चिम की कमाऊ जेलों पर ही बिताया। सूत्रों का कहना है कि मंत्री से अटैच रहने के दौरान उन्होंने पहले उन्होंने अपने ऊपर लगे दागों को रफादफा कराया। इसके कुछ बाद उन्हें प्रोन्नति प्रदान की गई। इसके बाद वह करीब साढ़े तीन साल तक अलीगढ़ और उसके बाद करीब इतने ही समय तक वह गाजियाबाद में रहे। गाजियाबाद से उन्हें पूर्वांचल की बांदा जेल भेजा गया था। छह माह बाद ही उन्हें बांदा से पश्चिम की कमाऊ कही जाने वाली मुरादाबाद जेल पर तैनात कर दिया गया।