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कविता : नर वानरहिं संग कहु कैसे
तुलसी ने कहा है मानस में। सीता ने पूँछा जब संशय में॥ नर वानरहिं संग कहु कैसे। कही कथा भई संगति जैसे॥ अंतरु मात्र एकु नर वानर में। पुच्छहीन वानर हैं नर वेश में॥ बड़े मदारी करवाते हैं नर्तन। नहीं करे, उसका महिमामर्दन॥ रामराज्य का स्वप्न सुहाना । दिखा रहे हैं वह गाकर गाना॥ त्याग […]
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